पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८५

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भयानक रस १६ भयदायक वस्तु के देखने वा सुनने से अथवा प्रवल शत्र के विद्रोह आदि करने से जब हृदय में वर्तमान भय स्थायी भाव होकर परिपुष्ट होता है तब भयानक रस उत्पन्न होता है। बालंबन विभाव-व्याघ्र, सर्प श्रादि हिंसक प्राणी, बीहड़ लथा विषय स्थान, श्मशान, बलवान् शत्रु, भूत-प्रेत की आशंका आदि। उद्दीपन विभाव-हिंसक जीव की भयानक चेष्ठा, शत्र के भयोत्पादक व्यवहार, भयानक स्थान को निर्जनता, निस्तब्धता, विस्मयोत्पादक ध्वनि श्रादि । अनुभाव-रोमांच, स्वेद, कंप, वैवयं, चिल्लाना, रोना, करुणाजनक, वाक्य आदि। सचारी भाव-शंका, चिता, ग्लानि, आवेग, मुर्छा, त्रास, जुगुप्ता, दीनता आदि। स्थायी भाव-भय । कर्तव्य अपना इस समय होता न मुझको ज्ञात है; कुरुराज चिन्ताग्रस्त मेरा जल रहा सब गात है। अतएव मुझको अभय देकर, आप रक्षित कीजिए, या पार्थ प्रण करने विफल अन्यत्र जाने दीजिए।-गुप्त काव्यगत रस-सामग्री-इसमें अभिमन्युबध बालंबन, पार्थ को प्रतज्ञा उद्दीपन, शरीर का जलना आदि अनुभाव और त्रास, शका, चिन्ता संचारी हैं। इनसे परिपुष्ट भय स्थायी रस रूप में व्यंजित है । रसिकगत रस-सामग्री-अर्जुन अालंबन, उनकी असहायावस्था उद्दीपन, रोमांच होना, तरस खाना आदि अनुनाव और शंका, चिन्ता, त्रास, आदि संचारी भाव हैं। एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृगराय । विकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय ॥-प्राचीन यहाँ अजगर और सिंह बालंबन विभाव है। उन दोनों की भयंकर प्राकृति तथा चेष्टा उद्दीपन विभाव हैं। मूर्छा, विकलता श्रादि अनुभाव हैं। स्वेद, कंप, रोमांच, श्रावेश आदि संचारी भाव है। इनसे स्थायी भाव भय परिपुष्ट होता है और भयानक रस की प्रतीति होती है । इसमें काव्यगत तथा रसिकगत रस-सामग्री प्रायः एक-सी है। चकित चकत्ता चौकि-चौंकि उठे बार-बार, दिल्ली बहसति चितै चाह करखति है। बिलखि बदन बिलखत बिजपुरपति फिरति फिरंगिन को नारो .फरकति है।