ब्रह्मविद्या कर सकती है और न राजलक्ष्मी' ही। शेली ने भी कहा है कि "कविता यथार्थतः अलौकिक-सी है। काड्वेल ने साधारणीकरण-रूप काव्य का लक्षण किया है, जिसका आशय यह है कि “काव्य मनुष्यों की उद्भिज्यमान आत्मचेतना है; किन्तु व्यक्ति-रूप में नहीं, अन्यान्य व्यक्तियो के साधारण भावों के साझीदार के रूप में है।"3 पाठक कविता केवल कवि की ही सृष्टि नहीं, एक प्रकार से पाठक की भी सृष्टि सप्तमी जाती है। कविता पाठकों के हृदय मे न पैठ सको तो वह कविता ही किस काम को ! कवि सार्थकजन्मा तभी है जब कि वह पाठक तो पाठक, जाति और देश के जीवन मे स्फूर्ति पैदा कर दे, उनके हृदय मे घर बना ले । एक कवि कहता है कि "कविता के रसमाधुर्य को कवि अर्थात् सहृदय पाठक ही जानता है, न कि उसका रचयिता कवि । जैसे कि भवानी के भ्र-विलासों को भवानीमती भव ही जन सकते है, न कि भवानी के जनक भूधर हिमालय ।"४ कवि-चित्त और पाठक चित्त के सहयोग से ही कविता की सृष्टि होती है। कैसी रचना पाठकों को प्रभावित कर सकती है, इसके सम्बन्ध मे एमर्सन का कहना है कि "किसी रचना का जन-समाज पर कितना प्रभाव पड़ता है, इसका परिणाम उसके विचार की गहराई से किया जा सकता है। यदि पृष्ठ के पृष्ठ आपको कुछ न दे सके तो उनका जीवन फतिगो से अधिक नही ठहर सकता।"५ यद्यपि गेटे के कथनानुसार “कवि की आवश्यकता अन्तर से हो पूरी हो जाती है, बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती"६, तथापि एमर्सन का कहना है कि "अगर . १. न ब्रह्मविद्या न च राजलक्ष्मी तथा यथेयं कविता कवीनाम् । २. Peotry is indeed something divine-A defence af Poetry ____३. Poetry is the nascent self-consciousness of man, not as an individual but as a sharer with others of a whole world of common emotion. ४ कवितारसमधुर्य कवियत्ति नै तत्कविः। ___ भवानी भ्र कुटीभङ्ग भवो वेत्ति न भूधर ॥ ५. The effect of any writing on the public mind is mathe- matically measurable by its depth of thought... if the pages instruct you not, they will die like flies in the hour. ६. Sufficiently provided from within, he has need of little from without-Goethe on the poet. का० द०-२
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