पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३१

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तुम लिखना सीखना चाहते हो तो राह-बाटों में उसे सीख सकते हो। इससे चलतों चीजे ही हाथ न लगेगी, ललित कलाओं की उद्देश्य-सिद्धि भी होगी। अक्सर लेखकों को जन-समाज के पाईबागो मे जाना चाहिये । लेखक का घर कालेज नहीं, बल्कि जन-समाज है।" कहने का अभिप्राय यह कि जन-समाज क मन मे बसना चाहते हो, तो उनके मन के लायक लिखो ; पाठकों के उपयुक्त लिखो, जिससे तुम्हारी रचना सार्थक प्रमाणित हो। इस दशा में यह कहना असंगत नहीं कि कलाकार की कला केवल उनकी कलम की ही करामात नहीं, उसमें पाठकों का भी कुछ हिस्सा होना चाहिये । साहित्य-रक्षा के लिए जैसे निरपेक्ष समालोचक की आवश्यकता है वैसे ही गुणी ग्राहक पाठक की भी । समालोचक कलाकार और पाठक की मध्यस्थता करके दोनो को नियंत्रित करने की चेष्टा करता है । इसके अभाव मे ही कुशल कलाकार को कराहकर यह कहने को बाध्य होना पड़ता है कि "निरवधि देश काल में कोई न कोई मेरी कृति का पारखी मुझ जैसा पैदा होगा ही। पाठक की सहृदयता कविता पढ़ने के सभी अधिकारी नहीं समझे जाते । काव्यास्वादन के अधिकारी वे है "जो विमल-प्रतिभाशाली है"3 अर्थात् तेजस्वी कल्पना-शक्तिशाली हृदयवाले है-वस्तु के साक्षात्कार की सामर्थ्य रखनेवाले हैं। कवि-सम्मेलनों के श्रोता जो किसी कविता पर वाह-वाह की आँधी उड़ा देते हैं, वह इस बात का सूचक नहीं कि सब के सब कविता के अन्तरंग में पैठकर ऐसा करते हैं। इनके आनन्द का कारण अधिकाश में कवि को गलाबाजी और कक्तिा पढ़ने का ढंग ही है। जो कविता के मर्म में पैठते हैं वे कभी ऐसा नहीं करते । ____कोई कविता पढ़कर पाठक या श्रोता तभी आनन्द उपभोग कर सकते हैं जब कि वे कविवर्णित प्रत्येक दृश्य, शब्द, अभिव्यक्ति और अर्थ को हृदयंगम कर सकें कवि १. If you would learn to write it's in the street you must learn it. Both for the vehicle and the aims of fine arts, you must frequent the public squire. The people, and not the colleges, it the writer's home. -Society and Solitude. २. उपत्स्यते सपदिकोऽपि समानधर्मा - ., कालोबय निरवधिविपुला च पृथ्वी ! भवभूति ३. विमल प्रतिमानशालि हृदयः । अभिननमारती