पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३०१

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२१६ काव्यदर्पण यह सिनेमा में प्रत्यक्ष अब दिखलाया जाने लगा है कि कोई दुखियारी कैसे पहाड़ पर से कूद पड़ती है और उछनती-कूदती दरिया में जा डूबती है। घटनाओं पर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह जीवन से अब ऊब गयी है। उसको जीवन के प्रति ऐसी घृणा हो गयी है कि उससे मुक्ति पाना ही श्रेयस्कर समझती है । उसे शोक है, पर उसकी जीवन के प्रति जुगुप्सा कम नहीं है। __ ऐसे स्थानों में वीभत्स रस ऐसा होता है, जिससे कोई नाक-भौं नहीं सिकोड़ सकता । इसको सरसता में कोई सन्देह नही। भले हो इसके आधार पर कोई काव्य न लिखा गया हो । जहाँ मसान, रक्त, मांस आदि का वर्णन होता है वहां उसका भी साहित्यिक रूप होने से उसमें आनन्ददायकता आ जाती है; क्योकि वास्तविकता के अनुभव से यह विपरीत हो जाता है। यहां यह ध्यान में रहे कि जुगुप्ता और अश्लीलता, दोनों एक नहीं। अश्लीलता शृङ्गार रस में संभव है। वहाँ वह घृणा उत्पन्न नहीं करती या वह स्वतः जुगुप्सा का रूप धारण नहीं करती। अश्लीलता मयोंदा का उल्लघन है; किन्तु घृण्ण ऐसी नहीं, उसका कार्य ही घृणा उत्पन्न करना है। यह बात अश्लीलता के लए आवश्यक नहीं। जुगुप्सा की मूलभूतता मान्य नहीं है। यद्यपि छोटे छोटे बच्च' में भी यह देखा जाता है कि वे घुट्टी नहीं पीते, कोई-कोई चीज नहीं खाते, किसी किसी चीज से मुंह विचका लेते हैं, तथापि मुलभूतता के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं माना जाता। फिर भी यही मनोवृत्ति समय पाकर घृणा का रूप धारण कर लेती है। __ वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुल्सा है। इसकी प्रवृत्ति सुरक्षा की भावना से होती है। भय में भी सुरक्षा की प्रवृत्ति है, पर उसमें पलायन की प्रबलता है और वीभत्स में पलायन की नहीं, दूरीकरण की कामना होती है। ज्ञात होता है, जैसे घृणित वस्तु शरीर में पैठती हो या पैठ गयो हो तो कै करके बाहर कर दी जाय । होन संसग के त्याग-जैसे विषयों में दोनों प्रवृत्तियां देखी जाती हैं । भयानक में शक्ति केन्द्रीभूत हो जाती है और उसकी अधिकता भी प्रकट हो जाती है; पर वीभत्स में शक्ति बिखर जाती है और उसका ह्रास हो जाता है। 'मालती-माधव' नाटक में जो श्मशान का वर्णन है उसमें वीभत्स रस के साथ भयानक रस को भी मात्रा विद्यमान है। ___ अधिकांश उदाहरणों पर दृष्टिपात करने से यह पता लगता है कि यह वीभरख रस रस की नहीं, भाव को योग्यता रखता है । उक्त नाटक में वीभत्स रस माधव के वीर रस का, सत्य हरिश्चन्द्र नाटक का श्मशान-वर्णन करुण का, कादबरी में चांडाल की बस्ती का वर्णन अद्भुत का, तुलसी आदि भक्तों का मानव-देह का प्सात्मक वर्णन शान्त रस का पोषक है। 'वैराग्व-तक' के अनेक श्लोक