२२२ काव्यदर्पण अनुभाव-दुखी दुनिया को देख कर कातर होना, झंझटों से घबराकर संसार-त्याग की तत्परता आदि । स्थायी भाव-निर्वेद वा शम। संचारी भाव-धृति, मति, हर्ष, उद्वेग, ग्लानि, दैन्य, अस्या, निर्वेद, जड़ता आदि । बोले मुनि यों चिता की ओर हाथ कर देखो सब लोग अहा क्या ही आधिपत्य है। स्याग दिया आप अजनन्दन ने एक साथ पुत्र हेतु प्राण सत्य कारण अपत्य है। पा लिया है सत्य शिव सुन्दर-सा पूर्ण लक्ष्य इष्ट सब हमको इसीका आनुगत्य है। सत्य है स्वयं ही शिव राम सत्य सुन्दर है सत्य काम सत्य और राम नाम सत्य है। गुप्त काव्यगत रस-सामग्री-दशरथ का प्राण-त्याग श्रालंबन, चिता का निर्देश श्रादि उद्दीपन, सब लोगों का कातर होना अनुभाव, 'राम-नाम सत्य है के निर्णय से मति, धृति आदि संचारी तथा निर्वेद स्थायी है। इनसे शान्तरस व्यखित होता है। रसिकगत रस-सामग्री-संसार की असारता श्रालंबन, उपदेश-रूप में उक्ति उद्दीपन, मन में विमल बुद्धि का होना अनुभाव; धृति, मति, ग्लानि आदि संचारी तथा निर्वेद स्थायी हैं। जानि पर्यो मोको जग असत अखिल यह ध्रुव आदि काहू को न सर्वदा रहत है। या ते परिवार व्यवहार जीतहाराविक त्याग करि सब ही विकसि रहो मन है। पवाल कवि कहै मोह काहू मैं रह्यो न मेरो क्योंकि काहू के न संग गयो तन धन है। “कीन्हों मैं विचार एक ईश्वर ही साथ नित्य ___ अलख अपरंपार चिदानंदघन है। इसमें संचार को असारता आलंबन, किसी का न रहना, तन, धन का साथ न नलीमा उद्दीपन, परिवार आदि का छोड़ना, मोह न रहना अनुभाव और मति, धृति, Hoshs.
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