पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ने जिस दशा में कविता लिखी है उस अवस्था की कल्पना करके उसके भाव को प्रत्यक्ष कर सके । पाठक या श्रोता में ऐसी कल्पना करने की जितनी शक्ति होगी उतना ही वे आनन्द-लाभ कर सकते है। कार्लाईल ने कहा है कि "अभिनिवेश- पूर्वक कविता-पाठ करने के समय हम कवि ही हो जाते है।' इसीको तन्मयी-भवन- योग्यता कहते है जो सहृदय में ही संभव है। ____ काव्य-पाठक के सम्बन्ध मे आरिस्टाटिल के टीकाकार बूचर ने भी लिखा है कि “प्रत्येक सुकुमार कला एक ऐसे द्रष्टा और श्रोता से आत्म-निवेदन करती है जो परिष्कृत रुचि-सम्पन्न और शिक्षित समाज के प्रतिनिधि-स्वरूप है। वह उस कला का सर्वेसर्वा समझा जाता है जैसे कि नैतिक दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति नीतिशास्त्र का अधिकारी होता है।" कविता आवश्यक है मेकाले का यह कहना युक्तियुक्त नहीं मालूम पड़ता कि "सभ्यता का जैसे-जैसे विकास होता जायगा, वैसे-वैसे कविता का ह्रास होता जायगा।०३ इस उक्ति की यथार्थता इसीमें दीख पड़ती है कि सभ्यता की चटकीली चाँदनी मे कविता का वह रूप नहीं रहेगा जो परम्परागत चला आता है और जिसका सौन्दर्य और स्थायित्व एक प्रकार से सुनिश्चित है। आधुनिक युग में यह देखा भी जा रहा है। इसके ये भी कारण हो सकते है- कविता की भरमार होना, जैली-तैसी रचना करना, मनमाने- बे-माने शब्दों का एक पंक्ति में रख देना और कला के नाम पर कविता को कलंकित करना। ____ जो कुछ हो, यह नहीं कहा जा सकता कि सभ्य-युग मे कविता का ह्रास हो रहा है। हाँ, ह्रास की बात तब मानी जा सकती है जब कि उसका अनादर हो; अच्छी कविताओं के पाठक कम हो; जो हो वे उधार-मँगनी लेकर पुस्तके पढ़नेवाले हो । यह ठोक है कि समाज के अनादर से मनुष्यों की मानसिक शक्ति लुप्त हो जाती है। कवि या लेखक समालोचक की सृष्टि करता है और समालोचक, कवि और पाठक में सामञ्जस्य स्थापित करता है। यों भी कह सकते हैं कि समालोचक कलाकारों को संयत और पाठकों को सुरुचिशाली बनाता है । इस दशा मे कभी नहीं कहा जा सकता १ To the ideal :spectator or listener, who is a man of •educated taste and respresents an instructed public, every fine art addresses itself; he may be called the rule and standard' of that art as the man of moral insight is of morals. -Aristotle's theory of Poetry and Fine Art. २ As civilisation advances poetry necessarily declines..