पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३२९

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२४४ काव्यदर्पण नववधू की बातें सुनकर पुत्र-वियोग से मर्माहत कौशल्या वधू-वियोग की आशंका से एक बार कांप जाती हैं । इस भयानक और अचानक वज्राघात से उनकी आकृति विवर्ण हो जाती है और वे अत्यन्त कारुणिक वचनों में राम के सम्मुख अपना अभिप्राय प्रकट करती है। उक्त पद्य में नवपरिणीता 'सीता' पालम्बन रूप विभाव हैं । उनको सुकुमारता अल्पवयस्कता, कष्टसहिष्णुता, स्नेहप्रवणता आदि उद्दीपन रूप विभाव हैं। पुत्र- वियोग के साथ वधू-वियोग को आशंका से कौशल्या को विवर्णता, उच्छ वास, दोन वचन, रोदन, दैव-निन्दा आदि अनुभाव हैं । इसी तरह चिंता, मोह, ग्लानि, दैन्य, स्मरण, जो बराबर उठते और मिटते हैं, संचारी भाव हैं। और, इस सबों के सम्मेलनात्मक रूप से श्रोता या वक्ता के अन्तर में जिस स्थायी भाव शोक डी परि- पुष्टि होती है, वही शोक करुण रस के रूप में परिणत हो जाता है। ___ यहां सब व्यापार-विभाव, अनुभाव, संचारी भाव की उत्पत्ति, इनके द्वारा शोक स्थायी भाव को परिपुष्टि तथा करुण रस को प्रतीति-क्रम से ही होते हैं। परन्तु, ये सब इतनी शीघ्रता में होते हैं कि स्वयं रसास्वादिता को भी पता नहीं चलता कि इतने काम कब और कैसे हुए। उपयुक्त पद्य में अनुभव किया गया होगा कि कौशल्या की उक्त से जो व्यंग्य रूप में करुण रस की प्रतीति होती है, उसके पहले होनेवाले व्यागरों के क्रम का ज्ञान कतई नहीं होता। वाच्यार्थ-बोध के साथ ही ध्वनिरूप में करुण रसा की व्यंजना हो जाती है। पाँचवीं छाया असंलक्ष्यक्रम ध्वनि के भेद असलदयक्रमध्वनि को अभिव्यक्ति छह प्रकार से होती है | ये हो अभिधा- मूलक असं लक्ष्यक्रम के छह भेद भी कहल ते हैं। जैसे, पदगत, पदांशगत, वाक्य- गत, वसंगत, रचनागत और प्रबंधगत । १ पद्गत असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य सखी सिखावत मानबिधि, सैननि बरजत बाल । 'हरुए' कहु मो हिय बसत सदा बिहारीलाल ॥-बिहारी मान की सीख देनेकालो सखी के प्रति नायिका कहती है कि सखी, धीरे से बोल । मैर दृश्य में बिहारीलाल-बसते है। वे कहीं सुन न लें। यहाँ 'हरुए' पद प्रयता बिहारीलाल में अनुराग सूचित करता है। इससे सम्भोगशृङ्गार ध्वनित