पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३३४

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२५० काव्यदर्पण यहाँ लोहितनयन ( लाल नेत्रवाला ) यह विशेषण वस्तुरूप पद है और कवि- प्रौढोक्तिमात्र-सिद्ध है ; क्योंकि 'लोहितनयन' फूल नहीं हो सकता। अतः, यहाँ कविकल्पित वस्तुरूप पद 'लोहितनयन' से विकसित फूल को वियोग-दशा ध्वनित होती है । वियोग-काल में रोने के कारण नेत्रों का लाल होना स्वाभाविक है । अतः यहाँ कविप्रौढोक्ति मात्र-सिद्ध वस्तु से वस्तुध्वनि है। २ वाक्यगत कवि-प्रौढोक्ति-मात्र-सिद्ध वस्तुध्वनि सिय-वियोग-दुख केहि विधि कहउँ बखानि । फूल बान ते मनसिज बेधत आनि ॥ सरद-चांदनी संचरत बहु दिशि आनि । बिधुहि जोरि कर बिनवत कुल गुरुजानि ॥-तुलसी यहाँ कामदेव का अपने फूल के बाणों से सीता को बेधना, शग्द-चाँदनी का चारों दिशाओं में फैलकर जलाना और चन्द्रमा को कुलगुरु मानकर सोता का प्रार्थना करना आदि कवि-प्रौढ़ोक्तिमात्र सिद्ध वस्तु है। मगर, इन्हीं कवि-कल्पित वस्तुओं से सोता को वियोग दशा तथा प्रेमाधिक्य वस्तु ध्वनित होतो है, जो वाक्य से है। इसलिए यह वाक्यगत वस्तु से वस्तुध्वनि का उदाहरण हुआ। ३ पदगत कविप्रौढ़ोक्तिमात्रसिद्ध वस्तु से अलंकार व्यंग्य बास चाहत हर सयन हरि तापस चाहत स्नान । जस लखि श्री रघुवीर को जग अभिलाषावान ॥-प्राचीन यश को स्वच्छ-उज्ज्वल बताना कविप्रौढोक्ति है। यश को देखकर शिव उसे कैलाश समझते हैं और वहां बसना चाहते हैं। विष्णु उसे क्षीरसागर समझ उसमें सोना चाहते हैं और तपस्त्री गंगा जानकर उसमें स्नान करना चाहते हैं । श्री रघुवीर के यश को देखकर संसार इसी प्रकार की अभिलाषाएँ करता है। इस वर्णनीय वस्तु से भ्रांति-अलंकार की ध्वनि होती है । यहाँ यश ही एक ऐसा पद है जो इस ध्वनि का व्यंजक है । अतः, उक्त भेद का यह पदगत उदाहरण हुआ। ४ पदगत कविप्रौढोक्तिमात्रसिद्ध अलंकार से वस्तुध्वनि वह इष्टदेव के मन्दिर की पूजा - सी, वह दीपशिखा - सी शान्त, भाव में लीन, वह क्रूरकाल-ताण्डव की स्मृति-रेखा सी, वह टूटे तर को छुटी लता - सी दीन, दलित भारत की ही विधवा है।-निराला इस पद्य में अनेक उपमाएँ हैं। सभी एक-पदगत या अनेक पदगत हैं। प्रत्येक पदगत पमा से पृथक-पृथक् भारतीय विधवा की पवित्रता, तेजस्विता, दयनीय दशा