पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पण काक्वाक्षिप्त के कुछ उदाहरण ये हैं- पंचानन के गुहा-द्वार पर रक्षा किसकी ? किसी को रक्षा नही । यह काकु द्वारा आक्षित व्यग्य है । नेक कियो न सनेह गुपाल सो देह धरे को कहा फल पायो । जब गोपाल से कुछ भी नेह का नाता नहीं जोड़ा तो जन्म लेने का क्या फल पाया ? कुछ भी नहीं। यह काकाक्षिप्त व्यंग्य है । हैं इससीस मनुज रघुनायक ? जिनके हनूमान से पायक । यहाँ काकु से व्यंग्य प्राक्षिप्त होता है कि राम मनुष्य नहीं देवता हैं । ८ असुन्दर व्यंग्य जहाँ वाच्यार्थ से प्रतीत होनेवाला व्यंग्यार्थ कुछ भी मनोहर न हो वहाँ असुन्दर व्यंग्य होता है। जैसे, बैठी गुरुजन बीच में सुनि मुरली की तान । मुरझति अति अकुलाय उर परे सांकरे प्रान ॥-प्राचीन मुरली की तान सुनकर गुरुजनो के बीच बैठी हुई बाला मनोसकर मुरझा आती है। प्राण कट में पड़ जाते है । यह वाच्यार्थ है । व्यंग्यार्थ है मुरली की तान का संकेत पाकर भी गोपिका का कृष्ण से मिलने के लिए जाने में असमर्थ होना। इसमें व्यग्यायं की अपेक्षा वाच्यार्थ कहीं अधिक सुन्दर है ।