२६२ काव्यदपर्ण (क) किसी देवता, सदशौद्भव नृपति या किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का वृत्तान्त लेकर अनेक सर्गों में जो काव्य लिखा जाता है वह महाकाव्य है। इन वृत्तान्तों के आधार पुराण, इतिहास आदि होते है । इनमें कोई एक रस प्रधान होता है और अन्य रत्र गौण । इनमें विविध प्रकार का प्राकृतिक वर्णन रहता है। अनेक छन्दों का उपयोग किया जाता है। ऐसी ही अनेक बाते लक्षण ग्रन्थों में महाकाव्य के सम्बन्ध में लिखी गयी है। उदाहरण में रामायण, रामचरित-चिन्तामणि, सिद्धार्थ आर्यावतं आदि महाकाव्य हैं। ___ रवीन्द्र बाबू का मत है कि वर्णानानुगुण से जो काव्य पाठकों को उत्तेजित कर सकता है। करुणाभिभूति, चकित, स्तम्भित, कौतूहली और अप्रत्यक्ष को प्रत्यक्ष कर सकता है, वह महाकाव्य है और उसका रचयिता महाकवि । उनका कहना यह भी है कि महाकाव्य में एक महच्चरित्र होना चाहिए और उसी महच्चरित्र का एक महत्कार्य और महदनुष्ठान होना चाहिये । (ख) काव्य महाकाव्य को प्रणाली पर तो लिखा जाता है, किन्तु उसमें महाकाव्य के लक्षण नहीं होते और न उसमें उसके ऐसा वस्तुविस्तार ही देखा जाता है । एक कथा का निरूपक होने से यह एकार्थक काव्य भी कहा जाता है। यह भी सगंवद्ध होता है । जैसे, प्रियप्रवास, साकेत, कामायिनी आदि । (ग) खण्ड काव्य वह है जिसमें वाक्य के एक अंग का अनुसरण किया गया हो। इसमें जीवन के एकांग का या किसी घटना का या कथा का वर्णन रहता है, जो स्वतः पूर्ण होता है । जैसे, मेघदूत, जयद्रथ-वध श्रादि। २-निबन्ध साधारणता का द्योतक है। कथात्मक या वर्णनात्मक जो कविता कई पद्यों में लिखी जाती है वह निबन्ध काव्य कहनाती है। वह अपने कुछ पद्यो के भीतर ही संपूर्ण होती है। जैसे, पद्यप्रमोद, सूक्तिमुक्तावली आदि संग्रह-काव्यों के काव्य-निबन्ध । ३-निर्बन्ध काव्य प्रबन्ध और निबन्ध के बन्धनों से मुक्त रहता है। इसका प्रत्येक पद्य चाहे वह दो पंक्तियों का हो चाहे कई पंक्तियों का, स्वतन्त्र होता है। इसके दो भेद होते हैं-( क ) मुक्तक और ( ख ) गीत । — (क) मुक्तक अपनेमें परिपूर्ण तथा सर्वथा रसोद्रेक करने में स्वतत्र रूप से समर्थ होता है। बिहारी आदि कवियों की सतसइयों के दोहे, तुलसी, भूषण आदि कवियों के कवित्त और सवैये इसके उदाहरण है। • २-गीत काव्य वह है जिसमें ताल-लय विशुद्ध और सुस्वर-सम्बद्ध पंक्तियाँ हो । गेय होने के कारण इन्हें गीत कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-(क) ग्राम्य "और (ख) नागर । माम्य गोत वे हैं जिन्हें समाजिक विधि-व्यवहारों के समय स्त्रियाँ गाती हैं।
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