पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३५

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___ कविता की भाषा व्यावहारिक, भावानुकूल, तथा संकेतात्मक होनी चाहिये । ऐसे शब्दों के स्थान-विशेष में विन्यास से ही अभिलषित अर्थ-व्यञ्जना संभव है और उसका प्रभाव भी अन्यान्य शब्दो और वाक्यांशों पर निर्भर है। शब्दो का मानसिक विवेचन और निपुण प्रयोग अनुभूति की अभिव्यक्ति में सहायक होता है। ऐसी स्थिति में प्रकाशन की परीक्षा की आवश्यकता नहीं रहती। ___थ-काँथकर, जोड़-तोड़कर रचना करनेवाले न तो कवि है और न उनकी रचना-पद-वाच्य । स्वाभाविक कवि के शब्द स्वाभाविक और स्वतः स्फूर्त होते है। उनके लिए प्रयत्न नहीं करना पड़ता। रीड साहब कहते है कि “वाक्य-निबन्धो में यथोपयुक्त शब्द यो नहीं आते ; बल्कि अनुभूति के सम्बन्ध से फूटे पड़ते है। वे कवि के मन में नहीं रहते; बल्कि वर्णनीय विषयों की प्रकृति मे वर्तमान रहते है।" इसीको हमारे यहाँ कहा गया है कि "मराहिये उस कवि-चक्रवर्ती को, जिसके इशारे पर शब्दों और अर्थों की सेना कायदे से खड़ी हो जाती है"।२ ___ बात यह है कि भाषा भाव का वाहन है। भाषा द्वारा ही भाव का प्रकाशन होता है। अतः भाव के अनुकूल ही भाषा का होना आवश्यक है। भाषा भाव का शरीर है और भाव मन । भाषा-भाव के अतिरिक्त जो भाव-व्यञ्जना (सजेष्टिवनेस) है वही प्राण है। जिस कविता में व्यञ्जना की बहुलता है उसी कवि का अधिक महत्त्व हैं। क्योंकि व्यंग्य कविता ही सर्वश्रेष्ठ कविता समझी जाती है। अतः कविता की भाषा व्यञ्जना-प्राण होनी चाहिये । काव्य का लक्ष्य-प्रानन्द "यह आत्मा वाङ्मय, मनोमय और प्राणमय है'।३ "श्रात्मा की मनन-क्रिया जो वाङ्मय रूप में अभिव्यक्त होती है वह निःसन्देह प्राणमय और सत्य के समय उभय लक्षण-प्रेय और श्रेय, दोनो से परिपूर्ण होती है। यही कविता है। पंचकोषों से हमारा शरीर है। वे है अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनन्दमय कोष । अन्नमय कोष और प्राणमय कोष Alir. the words do not come past in great poetry, but are torn our of the context of experience; they are not in poet's mind, bur in the nature of things he describes. -English Critical Essays. २. पस्येच्छयैव पुरतः स्वयमुज्जिहीते द्राग्याच्यवाचकमयः पृतनानिवेशः । श्रीकण्ठचरित्र ३. अयमत्मा वाङमयः, मनोमयः प्राणमयः । चूहद्वारस्यक ४. काव्य और कला। ,