पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३६५

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जीवनी या जीवन-चरित्र और यात्रा २८१ व्यक्ति के रूप में वर्णन करता है। इसे पाश्चात्य विचार की देन कह सकते हैं । दूसरी जीवनी वह है, जिसमें लेखक अपने विचार से ही उस महापुरुष के चरित्र का चित्रण तथा विवेचन स्वतन्त्रतापूर्वक करता है, जिसकी जीवनी लिखी जाती है। लोकमान्य तिलक आदि को कुछ जीवनियां ऐसी ही हैं। तीसरी जीवनी वह है जो कल्पित व्यक्तिवाली होती है और उसके लिखने में ऐसी चेष्टा की जाती है, जिसमें वह सच्ची-सी प्रतीत हो। . जीवन-चरित में जन्म से लेकर मरण-पर्यन्त की सारी बातें आ जानी चाहिये । इसमें कोई बात बनावट की या असत्य न हो। उसके सांगोपांग वृत्तांत में कोई श्रावश्यक बात छुटनी न चाहिये । चरित्र-नायक के गुण-दोष, आचार-विचार, शिक्षा-स्वभाव आदि का विवेचन भी आवश्यक है। सारांश यह कि जीवन का कोई भी अंश जीवनी में छूटने न पाये । जीवनी लिखने का उद्देश्य यही है कि पाठक चरित-नायक के जीवन के रहस्य, सिद्धांत, कार्य, चरित्र आदि से अपने को सुधारे और उनके गुणों को ग्रहण करे। यदि जीवनी से इस उद्देश्य की सिद्धि नहीं हुई तो जीवनी-लेखक का परिश्रम सफल नहीं कहा जा सकता। यात्रा या भ्रमण भ्रमण-वृत्तांतवाली साहित्यिक रचना को यात्रा कहते हैं। यात्रा अनेक प्रकार की होती है। जैसे-स्थान-विशेष को यात्रा, देश-यात्रा, विदेश-यात्रा, साइकिल-यात्रा, रेल-यात्रा, स्थल-यात्रा, वा जल-यात्रा श्रादि । इन यात्राओं से उतना लाभ नहीं हो सकता जितना कि पैदल यात्रा से । पैदल यात्री अपने मार्ग के स्थानों, प्रांतों और देशों को स्थिरता से चाक्षुष प्रत्यक्ष कर सकता है। वहां के लोगों को रहन-सहन, रूप-रंग, आचार-विचार, सभ्यता-संस्कृति श्रादि से सर्वतोभावेन सुपरिचित हो सकता है। पैदल यात्रा में वहां को भौगोलिक स्थिति का जो ज्ञान हो सकता है वह अन्यान्य यात्राओं के द्वारा संभव नहीं है । यात्रा-वृत्तांत में अपने ज्ञान और अनुभव को, प्राकृतिक दृश्यों तथा घटित घटनाओं की सारी बातें आ जानी चाहिए। उसकी भाषा सरल, सरस तथा वर्णनात्मक हो । यात्रा में जलव यु के परिवर्तन से जो प्राकृतिक ज्ञान होता है वह श्रवणनीय है। मनोरंजन यात्रा का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य है। पाठकों को वैसा ही मनोरंजन और भौगोलिक ज्ञान हो तो यात्रा-वृत्तांत लिखने का श्रम सफल समझा जा सकता है।