पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३६८

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काव्यदर्पण क्योकि वही हमारे विचारों और भावों को व्यक्त करती है। इससे वाक्य-विन्यास का शुद्ध, रोचक, संवत, चमत्कारक और प्रभावोत्पादक होना आवश्यक है। तीसरा उपादान है भाव-प्रकाशन का ढंग। रचना में वाक्यविन्यास का ऐसा ढंग होना चाहिये, जिसमें हमारा मनोगत भाव सरलता, स्पष्टता और सजीवता के साथ व्यक्त हो। इसके लिए अनावश्यक, जटिल, संदिग्ध और मिश्र वाक्य वजनीय हैं। रचना के लिए कोई मर्वमान्य नियम नहीं बनाया जा सकता। यह सब तो कुशल कलाकार की कुशलता पर निर्भर है। ___ वाक्य-रचना में स्पष्टता, एकता अर्थात् मुख्य वाक्यों और अवान्तर वाक्यों का सामञ्जस्य, ओजस्विता अर्थात् सजीवता लानेवाली शक्ति, धारावाहिकता अर्थात् भाषा का अविच्छिन्न प्रवाह (flow), लालित्य अर्थात् रोचकता, सुन्दरता और व्यञ्जकता अर्थात् मर्मबोधक शक्ति हो, तो वह रचना उत्तम कोटि को समझी जाती है। ___रुचिभिन्नता, व्यक्ति-वैशिष्ट्य और प्रकाशन-भङ्गी की विविधता से शैलियाँ भी विविध प्रकार की होती है। यद्यपि इनको सीमित करना संभव नहीं, तथापि इनको विशेषताओं को समक्ष में रखकर कुछ भेदों को कल्पना की गयी है, जो ये हैं- १ व्यावहारिक या स्वाभाविक शैलो-इसमें सरल, सुबोध और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग होता है। २ ललित शैली-इसकी भाषा सुन्दर-मधुर शब्दोंवाली तथा अलंकृत और चमत्कारक होती है। ३ प्रौढ़ या उत्कृष्ट शैलो-इसको भाषा प्रौद और उच्च विचारों के प्रकाशन-योग्य होती है। ४ गद्य-काव्य-शैलो-सरस, सुन्दर और काव्यगुणवालो रचना इसके अन्तर्गत आती है। इसका एक रूप प्रलापक-शैली के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें लेखक भावावेश में आकर किसी विषय को मर्मस्पर्शी भाषा में अपने आन्तरिक उद्गारों और अनुभूतियों को व्यक्त करता है। सजीव शैली हो साहित्य का सर्वस्व है। बारहवीं छाया काव्य का सत्य महाकवि टेनोसन ने लिखा है-'काव्य यथार्थ से अधिक सत्य है।" कई लोग ऐसा भी सोच सकते हैं कि कल्पना-प्रसूत काव्य का सत्य से क्या सम्बन्ध ! जो कुछ हम देखते हैं, जो प्रत्यक्ष है, वही सत्य है । इस प्रकार काव्य या कला में सत्य का समन्वय भी तो हो सकता है, जब वह प्रकृति को अनुकृति हो; किन्तु 1 Poetry is truer than fact.