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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३७०

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काव्य का संस्थे २८७ क्या कभी भी उसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करने का कुछ उपाय है ? नहीं। किन्तु काव्य में कालिदास ने जो चित्र खींचा है, वह प्रेम की महिमा और वियोग-दुःख का एकान्त सल्य-रूप है। यही बात 'मेघदूत' में बादलों को दूत बनाकर भेजने की है; किन्तु वियोगी को पोड़ा, जो सत्य होते हुए भी अदृश्य-अव्यक्त है, मृत्त हो उठी है। कालिदास और उनके करुण विलाप की बात दूर को है। 'प्रियप्रवास' का 'प्रिय पति वह मेरा प्राणप्यारा कहां है, दुख-जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है' यह विलाप कालिदास को कवि-निबद्ध-पात्र-प्रौढोक्ति द्वारा व्यक्त विलाप से कुछ कम है ? सहस्रो सहृदय इसको पढ़कर आत्मविभोर हो जाते हैं; किन्तु किसी ने इसे स्वप्न में भी असत्य कहने का साहस किया है ? क्या 'साकेत' की उर्मिला को बातें कभी अखत्य कही जा सकती हैं १ अतः, ऐसे स्थल में सत्य कुण्ठित नहीं होता । उसे हम अधिकतर सत्य कहते हैं । अर्थात्, काव्य का सत्य प्रकृत सत्य की तरह क्षणस्थायी और छिन्न नहीं होता। काव्य हमें जो बताता है, वह पूर्ण रूप से बताता है । वह सत्य के उन अंशों को, जिनकी कमी है, पूरा करके, जिसको अधिकता है, बाद दे करके, उसकी शून्यता को मिटाकर और छिन्नता को दूर कर हमें बताता है। सच्ची कविता बल्य के जीवन से प्रारमा को संगीतमय कर देती है। पाठक श्रात्मा की आँखों से सत्य को देखता और प्राणों के कानों से उसे सुनता है। कविता चिर सत्य का प्रकाश है। संसार के प्रत्येक क्षण और कण में उस अनंत श्राभा को दीप्ति विकसित होती है । कविता उसी सत्य की छवि को रूप देती है। तेरहवीं छाया काव्य के कलापक्ष और भावपक्ष शरीर और प्राण की तरह काव्य के भी दो पक्ष हैं-१ कलापक्ष और २ भावपक्ष। कला वह है जो अनन्त के साथ हमारा सम्बन्ध जोड़ने में असमर्थ हो।' प्राच्य और पाश्चात्य समीक्षकों के कला-सम्बन्धी जो सिद्धान्त हैं, वे अतीव महान् और उच्च हैं। अब लोग काव्य को भी कला में गिनने लगे है ; किन्तु काव्य स्वयं कला नहीं है। कविता का क्षेत्र कला से अधिक व्यापक और विस्तृत है। काव्य में भावों के उत्कर्ष के लिए, उसमें सरसता का संचार करने के लिए कला का सहारा लेना 1. Art is that which carries us to Infinity-Emerson.