२५ "कविता मानवी अनुभव को उपस्थित करने की कला है। साधारणतः कल्पना के द्वारा जिसका सम्बन्ध भावो से होता है"।' . काव्य मे भावना का महत्त्व है और अनेक पाश्चात्य समालोचकों ने इसको अत्यंत महत्त्व दिया है। इसका यह मतलब नहीं कि कल्पना-प्रधान काव्य उपेक्षणीय हो। हैजलिट कहता है "कविता कल्पना और भावनाओं की भाषा"२ है। कविता ऐसी होनी चाहिये जिसके मूल मे भावनात्मक विषय हो, कल्पना की कारीगरी हो, बुद्धि की कुशलता हो और उसपर नैतिक इच्छा-शक्ति का मुलम्मा हो। इसमे सन्देह नहीं कि वस्तु-प्रधान, अलंकार-प्रधान, स्वभाव-प्रधान, आत्माभिव्यंजनप्रधान कविता • भावनात्मक कविता की समकक्षता नहीं कर सकती। काव्य के विभिन्न रूप पण्डितराज की रमणीयार्थता उनके मतानुसार दोनों प्रकार के रस-प्रधान और वस्तु-प्रधान काव्यो मे पायी जाती है। यद्यपि उन्होंने इसकी स्पष्टता नहीं की है। इसी विचार को ध्यान में रखकर एकदो नवीन समालोचकों ने काव्य के दो 'भेद् कर दिये हैं। दासगुप्त ने जो दो भेद 'द्र ति काव्य' और 'दीप्ति काव्य' नाम से किये हैं उनके मूल कारण है-रसबोध और रम्यबोध ।3 दोनों में दोनों का अंश बर्तमान रहता है ; पर इनकी प्रबलता और प्रधानता के कारण ही इनके ये भेद किये मके हैं । भावसित्त चित्त में आत्मानन्द का प्रकाश रस है और रम्यबोध बुद्धिदीत चित्त मे आत्मानन्द का प्रकाश रम्यबोध है । ये परम्पर सापेक्ष है। एक को छोडकर दूसरे की गति नही। ये भेद मान्य हो सकते है और इन्ही नामो से इनकी यथार्थता भी है । पर चित्त के विशिष्ट गुणानुसारी इनके नो द्र तिकाव्य और दीप्तिकाव्य नाम दिये गये है ये यथार्थ नहीं; क्योकि चित्त के द्रवीभाव ही द्र ति है। यह विशेप-विशेष रसों में ही दीख पड़ती है, सब रसो में नही। माधुर्य गुण मे द्र ति होती है। शृङ्गाररस १ Poetry is the art of representing human experience ..."usually with chief reference to the emotions and by means of the imagination. -An Introduction toPoetry. २ Poetry is the language of the imagination and passions. ३ काव्यालोक (बॅगला) ४ चित्तद्रवोभावमयोहलादो माधुर्यमुच्यते । साहित्यदर्पण
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