पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४०

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कविता कौन नहीं मानेगा ? कवि की निपुणता का आशय तो हम उसकी प्रतिभा का चमत्कार ही समझते है। फिर इसकी कैसे संभावना की जाय कि वह कविता न होगी। शुक्लजी को जिस माथापच्ची करनेवाली कोरी कवि-कल्पना से आशय है उसको सूक्ति की संज्ञा देना सूक्ति शब्द के अर्थ को भ्रष्ट करना है। ऐसी रचना काव्य वा सूक्ति की किसी श्रेणी मे न आनी चाहिये । कल्पना का भावात्मक होना आवश्यक है। काव्य मे इसकी ही प्रधानता है । रमणीयता-लोकोत्तरानन्दजनकता वा रसात्मकता रचना मे होना काव्य के लिए आवश्यक है। थिोडौरवाट्स का कहना है कि 'उस काव्यात्मक अभिव्यक्ति को कविता न कहनी चाहिये जिसमे भावात्मक अर्थ की गंभीरता न हो” । काव्य और काव्याभास काव्य के जो स्वरूप दिखायी पड़ते है वे चार श्रेणियो मे बाँटे जा सकते है- १ रसकाव्य, २ बोधकाव्य, ३ नीतिकाव्य और ४ काव्याभास । १ रसकाव्य वह है जिसमे रस की प्रधानता हो । जहाँ भाव शब्द और अर्थ की सहायता से रस मे परिणत होता है वहाँ रसकाव्य होता है और जहाँ भाव उबुद्धमात्र होकर रह जाता है, रसावस्था तक नहीं पहुंच पाता, वहाँ भावकाव्य होता है। इसकी भी गणना रसकाव्य में ही होती है। यह नहीं कहा जा सकता कि. रसकाव्य में विचारांश या बोधांश नहीं रहता। रहता है, किन्तु इसकी प्रधानता नहीं रहती। इससे यह संज्ञा दी गयी है। यही श्रेष्ठ और स्थायी काव्य माना जाता है । - रचना को साहित्यिक बनाने के लिए भाव की प्रधानता होने पर भी बुद्धितत्त्व को विदा नहीं दिया जा सकता । लेखक वा कवि अपनी रचना मे जो कुछ कहता है उसे बुद्धिसंगत होना ही चाहिये ; चाहे वह सूक्ष्म से सूक्ष्मतम ही क्यों न हो । जिसके पद व्याहत अर्थ में प्रयुक्त हो, ऐसी रचना प्रलाप की कोटि मे आती है। साहित्य सत्य से विमुख नही रह सकता। ज्ञानप्रधान रचना मे तो इसकी प्रधानता रहती ही है। २ बोधकाव्य वह है जिसमे विचार की प्रधानता रहती है। उसमे हृदय की अपेक्षा मस्तिष्क की प्रौढता दीख पडती है। जो विचार व्यक्त किया जाता है उसमे रस- भाव का पुट भी रहता है । यदि ऐसा न होता तो इसका काव्यत्व ही लुप्त हो जाता । अभिप्राय यह कि विचार-प्रधान काव्य मे अर्थ का ही महत्त्व होता है। वह रूखा- सूखा नहीं, सरस और सौन्दर्यमण्डित होता है । इसीसे यह दूसरी कक्षा मे आता है । • १ No literary expression can, properly speaking, becalled. poetry which is not, in a certain deep sense, emotional.