पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४२

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"कलाकृति या कलावस्तु का काम है दर्शको के मन मे विशिष्ट भावना को जागृत करना"।' जैसा कि क्लाइव वेल ने कहा है । इस बात का समर्थन कालिदास यह कहकर करते है कि "रमणीय वस्तुयो को देखकर तथा मधुर शब्दों को सुनकर मन उत्कण्ठित हो उठता है" । सौन्दर्य-सृष्टि ही कलाकार का चरम उद्देश्य है । कलाकार की जैसी प्रवृत्ति होगी, उसकी जैसी भावना होगी, उसकी कलाकृति भी वैसी ही होगी। दर्पण मे प्रतिफलित अपना प्रतिबिम्ब जैसे लोचनो को सुखकारक होता है वैसे ही कलाकार अपनी कलाकृति मे अपनी भावनाओं का ही प्रतिबिम्ब देखकर आह्लादित होता है । अभिप्राय यह कि कलाकृति में कलाकार का व्यक्तित्व ही प्रस्फुटित रहता है । टैगोर का कहना है कि "कला में मनुष्यो की भावनात्मक सत्ता का ही आविष्कार होता है। इसीसे यह कहना सत्य प्रतीत होता है कि 'कलाकृति से कलाकार पहचाना जाता है ।' भवभूति ने भी “वाणी को अपनी कला कहा है"।४ देखने से तो यही विदित होता है कि प्राचीन काल मे कला शब्द का प्रयोग वहाँ भी होता था जहाँ किसी न किसी प्रकार का कौशल लक्षित होता था ; किसी प्रकार की जानकारी में थोड़ी सी भी चतुराई का पुट होता था। कहना चाहिये कि सभी प्रकार की सुकुमार और बुद्धिमूलक क्रियाये कला के अन्तर्गत आ जाती है। 'ललितविस्तर' की ८६ कलात्रों की सूची में कला का एक नाम 'काव्य- व्याकरण' अर्थातू काव्य की व्याख्या करना और दूसरा नाम 'क्रियाकल्प' आया हैं । इसका एक अर्थ 'काव्यकरणविधि' और दूसरा अर्थ 'काव्य और अलंकार' किया गया है। 'कामसूत्र' की चौंसठ कलात्रों में काव्यसमस्यापूरण, काव्यक्रिया अर्थात् काव्य बनाना और क्रियाकल्प, ये काव्य-सम्बन्धी तीन नाम आये है। 'प्रबन्धकोष' की ७२ कलाश्रो में काव्य और अलंकार ये दोनों नाम आये हैं। ऐसे ही अनेक स्थानों पर कलासूचियों मे काव्य, श्लोकपाठ, आख्यान और समस्यापूर्ति के नाम आये है। किन्तु आश्चर्य है कि क्षेमेन्द्र के 'कला-विलास' में विविध व्यक्तियों की विविध कलात्रों की सूचियाँ है; पर उनमे काव्यकरण या समस्यापूर्ति श्रादि नाम नहीं आये हैं। प्राचीन काल मे काव्य की कला में गणना होने का कारण उसका अनूठापन था। उसका रूप उक्ति-विशेषमूलक, चमत्कारक और कल्पनाविलासी ही था। इनमें १ The objects that provoke this emotion, we call works of art. २ रम्याणि वीक्ष्य मधुराञ्च निशन्य शब्दान्"""शकुन्तला '३ In art man reveals himself. What is Art? ४ वन्देमहिं च तावाणीममृतामात्मनः कलान् । उत्तररामर्वरित