पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४४९

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३६८ काव्यदर्पण ५ वीप्सा ( Repetition) जहाँ आदर, घृणा आदि किसी आकस्मिक भाव को प्रभावित करने के लिए शब्दों की आवृत्ति की जाय, वहाँ यह अलंकार होता है। १ हाय ! आर्य रहिये रहिये, मत कहिये, यह मत कहिये, हम संकट को देख डरें या उसका उपहास करें।-गुप्त राम के अपने को अन्यायी कहने पर लक्ष्मण के ये श्रावृत्ति-रूप में उद्गार हैं। वीप्सा से राम की उक्ति असह्य प्रतीत होती है। २ बहू तनिक अक्षत रोली, तिलक लगा दू, माँ बोली, जियो, जियो, बेटा आवो, पूजा का प्रसाद पावो।- गुप्त इस उदाहरण में दुहराये गये शब्दों से वात्सल्य फूटा पड़ता है । टिप्पणी-पुनरुक्ति से व्यक्तव्य की पुष्टि होती है और वीप्सा से मन का एक आकस्मिक भाव झलकता है । यही इनमें सामान्यतर अंतर है । ६ वक्रोक्ति ( The crooked speech ) । जहाँ कोई किसी बात को जिस मतलब से कहे, दुसरा उसका और हो अर्थ लगावे तो वक्रोक्ति अलंकार होता है। इसके श्लेषवक्रोक्ति और काकुवक्रोक्ति दो भेद होते हैं। १. श्लेषवक्रोक्ति तब होती है जब अनेकार्थवाची शब्दों से दूसरा अर्थ निकाला जाय । एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ? उसने कहा अपर कैसा? उड़ है गया सपर है। भक्त सलीम ने 'अपर' से दूसरे कबूतर के बारे में पूछा पर मेहरुन्निसा ने 'अपर' का 'पर-रहित' अर्थ लगाकर उत्तर दिया कि वह अपर नहीं, सपर-पर-सहित होने के कारण उड़ गया है। को तुम ? हरि प्यारी ! कहाँ बानर को पुर काम ? __ श्यान सलोनी ? श्याम कपि क्यों न डरे तब काम ।-प्राचीन इसमें हरि और श्याम कृष्ण नाम के लिए आये हैं, पर उत्तर करने में इनका बानर और सांवला अर्थ लिया गया है। २. काकुवक्रोक्ति वहां होती है जहां काकु से अर्थात् कण्ठध्वनि को विशेषता से भिन्न अर्थ किया जाय। मानस सलिल सुषा प्रतिपाली, जियई कि लवण पयोधि मराली। नव रसाल वन विहरणशीला, सोह कि कोकिल विपिन करीला।-तु