पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४५१

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काव्यदर्पण पक्ष में प्रतिष्ठा, मर्यादा और चूना के पक्ष में पानी । बिना पानी के चूना सूख जाता है। काम का नहीं रह जाता। ३ जो पहाड़ को तोड़-फोड़कर बाहर कढ़ता। निर्मल जीवन वही सदा जो आगे बढ़ता। पहाड़ को तोड़-फोड़कर निकलनेवाला जीवन-पानी प्रवाहित होता हुआ निर्मल हुआ करता है। यहाँ जीवन शब्द के श्लेष से यह भी अर्थ निकलता है कि मनुष्य का वही जीवन धन्य है जो पहाड़ जैसी विपत्तियों को भी रौंदकर आगे बढ़ता हो जाता है। इसमें श्लेष अभंग है। (ख) भंग श्लेष वह है जिसमें शब्दों को भंग किया जाय । बहुरि शक्र सम विनवौं तोही, संतत सुरानीक हित जेही। इन्द्र के पक्ष में सुरानीक का अर्थ है सुरों अर्थात् देवताओं को अनीक-सेना और दुष्ट के पक्ष में सुरा, मदिरा, नीक, अच्छा अर्थ है । यहाँ दो अर्थ के लिए सुरानोक शब्द का भंग है। को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर । वृषभानुजा=राधा और बैल की बहन, हलधर = बलराम और बैल । पहले में सभंग और दूसरे में अभंग श्लेष है। शब्दालंकारों में प्रहेलिका, चित्र आदि भी शब्दालंकार हैं । दूसरी छाया अर्थालंकार (Figure of Speech in Sense) जिन शब्दों द्वारा जिस अलंकार की सृष्टि होती हो उन शब्दों के बदलने पर भी वह अलंकार बना रहे तो अर्थालंकार होता है। व्यासजी कहते हैं कि जो अर्थों को अलंकृत करते हैं वे अर्थालंकार हैं। अर्थालंकार के बिना शब्द-सौन्दयं भी मनोहर नहीं होता। . : साहश्यगर्भ भेदाभेद प्रधान में चार अलंकार हैं- अर्थालंकारो में सादृश्यमूलक अलंकार प्रधान हैं और उनका प्राणोपम उपमा अलंकार है। १अलङ्करणमांसामर्थालङ्कार इष्यते। ते विना शब्दसौन्दर्यमपि नास्ति मनोहरम् | अग्निपुराण