पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४५२

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अर्थालंकार ३७१ १ उपमा (Simile) दो पदार्थों के उपमान-उपमेय भाव से समान धर्म के कथन करने को उपमालंकार कहते हैं। अर्थात् जहाँ वस्तुओ में विभिन्नता रहते हुए भी उनके धर्म, रूप, गुण, रंग स्वभाव, श्राकार आदि को समता का वर्णन किया जाय वहां यह उपमालंकार होता है। वामनाचार्य कहते हैं कि 'उपमेय और उपमान में सादृश्य की योजना करने- वाले समान धर्म का नाम हो उपमा है' । उपमा अलंकार जानने के पूर्व उसके चारों अंगों को समझ लेना बहुत आवश्यक है। वे ये हैं- १ उपमेय (The subject compared) २ उपमान (The object with which comparison is made) ३ धर्म (Common attribute) ४ वाचक (The word implying comparison) हिन्दी में १ उपमेय को वर्णनीय, वण्र्य, प्रस्तुत, विषय और प्रकृति ; २ उपमान को अवर्णनीय, अवयं, अप्रस्तुत, अप्रकृत, विषयी और ३ धर्म को साधारण धर्म भी कहते हैं। एक उदाहरण से समझे- आनन सुन्दर चन्द्र-सा इसमें 'आनन' उपमेय है अर्थात् उपमा देने के योग्य है । इसीको उपमा दी गयी है और यही चन्द्र के समान कहा गया है या इसको समता की गयी है। इसमें चन्द्र उपमान है अर्थात् उपमा देने की वस्तु है। इसीसे उपमा दो गयो है और इसीसे समता को गयी है। इसमें सुन्दर समान धर्म है। वहीं उपमान और उपमेय दोनों में समानता से रहता है । समान धर्म से गुण, क्रिया आदि ग्रहण होता है। सुन्दरता मुख और चन्द्र दोनों में है। इसमें उपमा वाचक सा शब्द है। यह उपमान और उपमेय को समानता सूचित करता है । यही मुख और चन्द्र को समानता को बतलाता है। उपमा के दो भेद होते हैं-१ पूर्णोपमा और २ लुप्तोपमा। इनके भी अनेक भेद होते हैं। १ सादृश्यप्रयोजकसाधारण धर्म सम्बन्धोऽद्य पमा । का० प्र० बालबोधिनी