रूपक अमेद के तीन भेद होते हैं-सम, अधिक और न्यून ? (१) जहाँ उपमेय में उपमान को न्यूनता या अधिकता के बिना ज्यों का त्यों आरोप होता है वहाँ सम अभेद रूपक होता है। बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट में डूबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी।-प्रसाद इसमें तीन रूपक हैं । अम्बर में पनघट का, तारा में घट का, और उषा में नागरी का सम अभेद रूप से आरोप किया गया है। (२) जहाँ उपमेय में उपमान के आरोप के अनन्तर कुछ अधिकता कही जाती है वहां अधिक रूपक है और (३) जहां न्यूनता कही जाती है वहां न्यून रूपक होता है । यह एक प्रकार का व्यक्तिरेकालंकार है। जगत की सुन्दरता का चाँद सजा लांछन को भी अवदात। सुहाता बदल-बदल दिन-रात नवलता ही जग का आह लाद ।-पंत सुन्दरता में चन्द्रमा का आरोप है पर यह चांद लांछन को भी अवदात बना देता है । यही अधिकता है। नव विधु विमल तात जस तोरा, रघुवर किंकर कुमुद चकोरा । उदित सवा अथइहिं कबहूँ ना, घटहिं न जग नम दिन-दिन दूना। यहाँ यश में नये चंद्रमा का आरोप है । चन्द्रमा घटता-बढ़ता है पर यथारूप चंद्रमा सदा उदित रहता है, कभी अस्त नहीं होता । उपमेय को यही अधिकता है। उषा रंगीली, किन्तु सजनि उसमें वह अनुराग नहीं। निर्झर में अक्षय स्वर प्रवाह है पर वह विकल विराग नहीं। . ज्योत्स्ना में उज्ज्वलता है पर वह प्राणों का मुसकान नहीं फूलों में हैं वे अधर, किन्तु उनमें वह मादक गान नहीं।-मिलिन्द यहाँ उपमान अधर आदि की स्वाभाविक अवस्था से कुछ न्यूनता दिखाई गयी है। बिना सरोवर के खिला देखो वदन सरोज । बाहुलता मृदु मंजु है सुमन न पाया खोज । राम यहाँ सरोवर प्रौर सुमन की न्यूनता वर्णित है। सम अभेद रूपक के तीन भेद होते हैं-सावयव, निरवयव और परंपरित । सावयय (सांग) रूपक उपमेय के अवयवों के सहित उपमान के अवयवों के आरोप कि जाने को सावयव रूपक अलंकार कहते हैं।
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