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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४६३

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कविदर्पण इसके दो भेद होते हैं -समस्त-वस्तु-विषय और एकदेशविवति ।। १ समस्त-वस्तु-विषय वह है जिसमें सभी आरोप्यमाणो-उपमानों और सभी आरोप के विषय-उपमेयो का शब्द द्वारा स्पष्ट कथन किया जाय । १ मेरी आशा नवल लतिका थी बड़ी ही मनोज्ञा नीले पत्ते सकल उसके नीलमों के बने थे। हीरे के थे कुसुम, फल थे लाल गोमेदकों के पन्नों द्वारा रचित उसकी सुन्दरी डंटियां थीं।-हरिऔध इसमें श्राशा उपमेय को नवललतिका उपमान में एकरूपता मानकर अारोप्य- माणों-नीलम, होरा, गोमेद, पन्ना का और आरोप के विषयों-पत्ता, फूल, फल, डंटी का शब्द द्वारा स्पष्ट कथन है। आनन अमल चन्द्र चन्द्रिका पटीर पंक दसन अमंद कुन्द कलिका सुढंग की। खंजन नयन पदपॉति मृदु कंजनि के मंजुल मराल चाल चलत उमंग की। कवि 'जयदेव' नभ नखत समेत सोई ओढ़े चार चूनरि नवीन नील रंग की। लाज भरि आज ब्रजराज के रिझाइबे को सुन्दरी सरद सिधाई सुचि अंग की। इसमें शरद् को सारी सामग्री-चन्द्र, चन्द्रिका आदि में नायिका के अंगों- मुख, नयन, दर्शन आदि का आरोप है । इस प्रकार शरद् ऋतु में सुन्दरी नायिका का रूपक है। (२) एक देशविवर्ति रूपक वह है जिसमें कुछ अारोप्यमाण वा आरोप के विषय तो शब्दतः स्पष्ट कहे जायँ और कुछ अर्थ के बल से आक्षिप्त होते हों। जीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की बाली, फंस गयी मनोहर भावों की मछलियां सुघर भोलीभाली।-पंत इसमें मछलियाँ फँसाने के सभी साधन हैं। सावयव उपमेय और उपमानों को शब्द द्वारा स्पष्ट कथन है, पर 'मैंने उपमान उक्त नहीं है । पर मछली फँसाने का काम होने से 'मैने के स्थान पर धीवर उपमान का सहज ही श्राक्षेप हो जाता है। तरल मोती से नयन भरे मानस से ले उठे स्नेह-धन, कसक विद्यु- पलकों के हिमकण, , सुधि-स्वाति की छह पलक को सीपी में उतरे ।-महादेवी इसमें आँसू पर तरल मोती का आरोप है । आँस उपमेय का शब्द से कथन नहीं है, पर अन्य आरोपों के द्वारा उपमेय आँस स्वतः श्राक्षिप्त हो जाता है । इसके अन्य अवयवों-स्नेह-धन, कसक-विद्यु, सुधि-स्वाति, पलक-सौपी का शब्द द्वारा स्पष्ट कथन है। इससे यह भी एकादेशविवर्ति रूपक है।