परिणाम यह कोकनद-मद-हारिणी क्यों उड गयो मुख-लालिमा। क्यों नील-नीरज-लोचनों की छा गयी यह कालिमा । क्यों आज नीरस दल सदश मुख-रंग पीला पड़ गया। क्यों चन्द्रिका से हीन है यह चन्द्रमा होकर नया ।-पुरो० दमयन्ती के मुख को नया चन्द्रमा बताकर तद्र पता दिखाई गयो है, पर चन्द्रिका से हीन कहने के कारण उसमें न्यूनता भी प्रकट कर दी गयी है। दुई भुज के हरि रघुवर सुन्दर भेष । एक जीभ के लछिमन दूसर सेस । तुलसी लछमन को दूसरा शेष तो बताया गया, पर एक जीभ के कहने से न्यूनता भ दिखा दी गयी। अधिक और सम भी इसके भेद होते हैं। ६ परिणाम ( Commutation) जहाँ असमर्थ उपमान उपमेय से अभिन्न होकर किसी कार्य के साधन में समर्थ होता है वहाँ परिणाम अलंकार होता है। मेरा शिशु संसार वह दूध पिये परिपुष्ट हो। पानी के ही पात्र तुम प्रमो रुष्ट वा तुष्ट हो। गुप्त यहां संसार उपमान जब तक उपमेय (शिशु) से एकरूप नहीं होता तब तक उपमान का दूध पीना कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। पद-पंकज ते जलत वा कर-पंकज ले कंजु । मुख-पंकज ते कहत हरि बचन रचन मुद मंजु ।-प्राचीन इससे पंकज जब तक पद, कर और मुख से एकरूप नहीं हो जाता तब तक चलने, लेने और कहने का कार्य नहीं सिद्ध हो सकता। टिप्पणी-जहां उपमान स्वयं कार्य करने में समर्थ होता है वहां रूपक होता है। जैसे, पुलक-कदम्ब खिले थे और जहाँ उपमान उपमेय में एकरूप होकर किसी कायं के करने में समर्थ होता है वहां परिणाम होता है । ७ संदेह (Doubt) जहाँ किसी वस्तु के सम्बन्ध में सादृश्य-मूलक संदेह हो वहाँ यह अलंकार होता है। कि, क्या, किया, धौं, किधौं श्रादि शब्दों द्वारा सन्देह प्रकट किया जाता है। कहीं ये नहीं भी रहते हैं। का० द०-३०
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