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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८३

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गम्यौपम्याश्रय ४०३ ३ तीसरी निदर्शना-जहाँ उपमेय का गुण उपमान में अथवा उपमान का शुण उपमेय में आरोपित हो वहां यह भेद होता है । जिसकी आँखों पर निज आँखें रख विशालता नापी है। विजय गर्व से पुलकित होकर मन ही मन फिर कॉपी है। वह भी तुझको ताक रहा है लखने को उत्फुल्ल बदन । तुझे देखकर भूल गया है भरना भी चौकड़ी हिरन । बेगम को आँखों की नाप-जोख में जो विजय मिली, उससे स्पष्ट है कि हिरण की आँखों से उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं। यहाँ उपमान का गुण उपमेय में है। भारती को देखा नहीं कैसी है रमा का रूप, __ केवल कथाओं में ही सुने चले आते हैं । सीताजी का शील सत्य वैभव शची का कहीं किसी ने लखा ही नहीं ग्रन्थ ही बताते हैं। दीन दमयंती की सहनशीलता की कथा, झूठी है कि सच्ची कौन जाने कवि गाते हैं । इन्दुपुर वासिनी प्रकाशनी मल्हार वंश, मातु श्री अहिल्या में सभी के गुण पाते हैं। यहाँ अहिल्याबाई उपमेय में भारती आदि उपनानों के गुण का कथन है। ___ सातवीं छाया गम्यौपम्याश्रय (भेदप्रधान) तीसरे भेद-प्रधान में व्यतिरेक और सहोक्ति दो अलंकार पाते हैं । १८ व्यतिरेक (Dissimilitude contrast) उपमान की अपेक्षा उपमेय के उत्कर्ष-वर्णन को व्यतिरेक अलंकार कहते हैं। इसके प्रधानतः चार भेद होते हैं । १ उपमेय का उत्कर्ष और उपमान का अपकर्ष कहा जाना- स्वर्ग की तुलना उचित ही है यहाँ, किन्तु सुरसरिता कहाँ सरयू कहाँ ? यह मरों को मात्र पार उतारती, यह यहीं से जीवितों को तारती।-सा. ___इसमें उपमेय सरयू के उत्कर्ष का तथा उसमान सुरसरिता का कारण निर्देश- "पूर्वक अपकर्ष का वर्णन है।