नवीं छाया गम्यौपम्याश्रय के शेष भेद शेष छह भेदों में पृथक्-पृथक् श्रप्रस्तुतप्रशंसा आदि छह अलकार हैं। २४ अप्रस्तुतप्रशंसा (Indirect Description) जहाँ प्रस्तुत के वर्णन के लिए प्रस्तुत के आश्रित अप्रस्तुत का वर्णन किया जाय वहाँ यह अलंकार होता है। अभिप्राय यह कि प्रासंगिक बात को छोड़कर अपासंगिक बात के वर्णन-द्वारा उसका बोध कराना ही अप्रस्तुतप्रशंसा है । इसके मुख्य पाँच प्रकार हैं। उनमें कार्य, कारण, सामान्य-विशेष और सारूप्य नामक तोन सम्बन्ध होते है। (१) काय-निबन्धना-प्रस्तुत कारण के लिए अप्रस्तुत कार्य का बोध कराना। है चन्द्र हृदय में बैठा उस शीतल किरण सहारे । सौन्दर्य-सुधा बलिहारी चुगता चकोर अंगारे ।-प्रसाद इस पद्य द्वारा इतना हो कहना अमोष्ट है कि सच्चा प्रेम ऐसा हैं जो प्रेमी को अमर बना देता है। यहाँ वर्णित काय द्वारा अपनुन प्रेम कारण का बोध कराया गया है। राधिका को बदन सवारि विधि धोये हाथ, ताते भयो चन्द, कर झारे भये तारे हैं। यहां राधा के मुख का सोन्दर्य-वर्णन अभोष्ट है जो कारण-स्वरूप है। उसका वर्णन न करके हाथ धोने और झरने से चन्द्रमा और तारों को उत्पत्ति-रूप कार्य द्वारा उसका निर्देश किया गया। (२) कारण-निबन्धना-प्रस्तुत कार्य के लिए अप्रस्तुत कारण का बोध कराना। जो चन्द्रमुख ठंढी हवा से सूखता है गेह में, वह घाम में लू से झुलस कर हा मिलेगा खेह में , चंपाकली सी देह वह क्यों खरखरी भूपर कमी, कब सो सकेगी, सो रही है फूल कार जो अमी।-रा० च० उ० राम ने सीता से 'मेरे साथ बन च जो इस प्रस्तुत कार्य को स्पष्ट न कहकर उसके अप्रतुत वाघ कारण का हो उस्तेख उक्त पद्य में किया है । इससे यहाँ कारण-निबन्धना अप्रस्तुतप्रशंसा है।
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