पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४९३

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ब्याजस्तुति ४१३ इसमें केवट ने चरण धोने की अभिलाषा को सीधे न कहकर यो घुमा-फिरा कर कहा। टिप्पणी-इस अलंकार में भग्यन्तर से कथन व्यंग्याथ-सा प्रतीत होता है, पर जैसे वह अवाच्य होता है वैसे यहां यह अवाच्य नहीं है ; बल्कि शब्द द्वारा इसमें कथन होता है। कैतवापह्न ति में एक वस्तु के छिपाने के लिए मिस या व्याज का प्रयोग होता है और इसमें मिस या व्याज इच्छित काय के साधन के लिए हो होता है। २७ व्याजस्तुति ( Artful praise or Irony ) स्तुति के वाक्यों द्वारा निन्दा और निन्दा के वाक्यों द्वारा स्तुति करने को व्याजस्तुति अलंकार कहते हैं। आत्म-ज्ञान ही वह मुग्धा वही ज्ञान तुम लाये। धन्यवाद है बड़ी कृपा की कष्ट उठाकर आये ।-गुप्त उद्धव के प्रति गोपी को इस उक्ति में है तो स्तुति, पर इसके द्वारा उनको यह निन्दा है कि तुम अविवेकी हो और तुम्हारा इसके लिए आना व्यर्थ है। जो बरमाला लिये आपही तुमको बरने आयी हो, अपना तन, मन, धन सब तुमको अर्पण करने आयी हो। मज्जागत लज्जा तजकर भी तिस पर करे स्वय प्रस्ताव, कर सकते हो तुम किस मन से उससे भी ऐसा बर्ताव । गुप्त लक्ष्मण को लक्ष्य कर कही गयी सीता को इस उक्ति में सूर्पणखा की प्रशंसा तो झलकती है पर परपति से वासना की परितृप्ति करने की कामना रखने के कारण- उसकी निन्दा है। निन्दा में स्तुति- राज-भोग से तृप्त न होकर मानों वे इस बार। हाथ पसार रहे हैं जाकर जिसके-तिसके द्वार । छोड़कर निजकुल और समाज । गुप्त यशोधरा को उक्ति यद्यपि अनुमान रूप में है, सतो स्पष्ट रूप में कैसे कहें, तथापि उससे बुद्धदेव की निन्दा झलकती है ; पर इसके द्वारा बुद्धदेव के संसार से विराग, ममता, त्याग तथा समदशिता के भाव को ही प्रशंसा है। मोहि करि नंगा अंग अंगन भुजंगा बाँधे, ऐरी मेरी गंगा तेरी अद्भुत लहर हैं। प्राचीन इसमें प्रत्यक्ष तो गंगाजी को निन्दा है, पर तुम सबको शिवस्वरूप बना देती हो, यह प्रशंसा फूटी पड़ती है।