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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४९८

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४१८ काव्यदपम अपने दिन-रात हुए उनके क्षण ही भर में छवि देख यहाँ सुलगी अनुराग की आग वहाँ जल से भरपूर तड़ाग जहाँ ।-प० न० त्रि. यहाँ आग-पानी जैसी विरोधिनी वस्तुओं में एकत्र स्थिति दिखाई गयो है; जिसका परिहार प्रेम का वर्णन होने से हो जाता है। ३१ विभावना (Peculiar Causation) विभावना अलंकार में कारणान्तर की कल्पना की जाती है। इसके छह भेद होते हैं। १. प्रथम विभावना अलंकार वहाँ होता है जहां प्रसिद्ध कारण के अभाव में भी कार्योत्पत्ति का वर्णन होता है । सूर्य का यद्यपि नहीं आना हुआ, किन्तु समझो रात का जाना हुआ। क्योंकि उसके अंग पीले पड़ चुके, रम्य रत्नाभरण ढीले पड़ चले।-गुप्त सूर्योदय कारण के अभाव में भी रात्रि-प्रयाण का कार्य वर्णित है। अंग पोला पड़ना आदि रात के जाने के कारण की कल्पना है । इपसे उक्तिनिमित्ता विभावना है। किन्तु आज आकुल है ब्रज में जैसी वह ब्रजरानी। दासी ने घर बैठे उसको मर्मवेदना जानी। गुप्त घर बैठे-बिना ब्रज में गये कारण के बिना ब्रज की रानी-राधा की मम- वेदना जानना कार्य वर्णित है । निमित्त उक्त न होने से अनुक्तनिमित्ता है। बिनु पद चले सुनै बिनु काना, कर बिनु कर्म करै विधि नाना । आनन रहित साल रस भोगी, बिनु बानी वकता बड़ योगी।-तुलसी कर आदि के बिना चलना आदि कार्य वणित है। २. दूसरी विभावना वहां होती है जहां कारण के अपूर्ण रहने पर भी कार्य को उत्पत्ति वर्णित हो। तुमने भौरों की गुञ्जितज्या कुसुमों का लीलायुध थाम । अखिल भुवन के रोम-रोम में केशर शर भर दिये सकाम । -पत इसमें कार्य को दृष्टि से कारण की अपूर्णता वर्णित है। दीन न हो गोपे सुनो दोन नहीं नारी कमी भूत-दया-मूत्ति वह मन से शरीर से। क्षीण हुआ वन में क्षुधा से मैं विशेष जब मुझको बचाया मातृ-जाति ने ही क्षीर से।