पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४९९

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विभावना ४१६ आया जब मार मुझे मारने को बार-बार • अप्सरा-अनीकिनी सजाये हेम तीर से, तुम तो यहाँ थी ध्यान धीर हो तुम्हारा वहाँ जूझा मुझे पीछे कर पंच शर वीर से। गुप्त यशोधरा के ध्यान-मात्र असमग्र कारण से कामदेव-विजय का कार्य कहा गया है। मंत्र परम लघु जासु बस विधि हरि हर सुर सर्व । महा मत्त गजराज कहँ बस कर अंकुस खर्व । तुलसी विधि आदि सब सुरों और गजराज को बस करने जैसे कठिन कार्य के लिए मंत्र और अंकुश जैसे लघु और खर्व कारण का कथन है। ३. तीसरी विभावना वहाँ होती है जहां प्रतिबंधक होते हुए भी कार्य का होना वर्णित हो। श्यामा बातें श्रवन करके बालिका एक रोयी, रोते-रोते अरुण उसके हो गये नेत्र दोनों। ज्यों-ज्यों लज्जा विवश वह थी रोकती वारिधारा, त्यों-त्यों आँसू अधिकतर थे लोचनों मध्य आते।-हरिऔध लाजवश रोकने का प्रतिबंध रहते भी श्रांसू का उमड़-उमड़ पाना कार्य वर्णित है। मानत लाज लगाम नहीं नेक न गहत मरोर । होत तोहि लखि बाल के दृग तुरंग महजोर ।-बिहारी यहाँ लाज और मरोड़ के प्रतिबंधक होते भी नायिका के हगतुरंग मुंहजोर हो जाते हैं, वश में नहीं रहते, यह कार्य पूर्ण हुआ। ४. चौथो विभावना वहां होती है, जहां किसी वस्तु को सिद्धि का कारण से अर्थात् उसका कारण नहीं होने पर भी, होना वर्णित होता है । जिनका गहन था गेह जिनका था बना वल्कल वसन, मृदु मूल दल था फूल फल या जल रहा जिनका असन । कामाग्नि में जल भुन गये वे भी बेचारे कूद कर, फिर खीर खोये चाम कर स्मर से बचेगा कौन नर ।-रा. कामाग्नि में जलने का कारण बनवास और फलाहार हो नहीं सकता। फिर भी -मुनियों का कामाग्नि में जलना वर्णित है । जो हिन्दू-पति तेग तुव, पापिन भरी सदाहि, अचरज या की आँख सों, अरिगन जरि-जरि जाहिं ।-भूषण