पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२० काव्यदर्पण यहाँ शान चढ़ी तलवार को श्रांच से शत्र का जलना अकारण से कार्य कहा गया है। ५. पांचवीं विभावना में विरुद्ध कारण से कार्य का होना वर्णित होता है । दुख इस मानव आत्मा का रे नित का मधुमय भोजन । दुख के तम को खा-खा कर भरती प्रकाश से वह मन ।-पंत इसमें तम खाकर विरुद्ध कारण से प्रकाश से मन भरना कार्य वर्णित है। चुभते ही तेरा अरुण बान बहते कन-कन से फूट-फूट मधु के निर्झर से सजल गान ।-महा. इसमें बान लगने से गान का निकलना विरुद्ध कारण से कार्य वर्णित है। ६. छठी विभावना में कार्य से कारण का उत्पन्न होना वर्णित होता है। चरण कमल से निकली गंगा विष्णुपदी कहलायी। कमल होने का कारण जल है, पर यहां कमलचरण से गंगा के निकलने का काय वर्णित है। तेरो मुख अरविन्द से बरसत सुखमा नीर । यहां नीर कारण कार्य कमल से उत्पन्न होना उक्त है। हाय उपाय न जाय कियो ब्रज बड़त है बिन पावस पानी। धारन ते असुवान की हैं चख मीनन ते सरिता सरसानी ।-प्राचीन' यहां मौन कार्य से सरिता का सरसाना कारण कहा गया है। ३२ विशेषोक्ति (Peculiar Allegation) प्रबल कारण के होते हुए भी कार्य सिद्ध न होने के वर्णन को विशेषोक्ति कहते हैं। इसके तीन भेद होते हैं- १. अनुक्तिनिमित्ता वह है, जिसमें निमित्त उक्त न हो। फिर विनय-अनुनय किया पदान्त समझाया बहुत कुछ किन्तु मै तो सत्य ही पाणिग्रहण से विरत ही था ।-उ० शं० भट्ट- राधा के प्रेमी का उक्त पादान्त प्रति रूप कारण के रहते भी राधा का विवाह से विरत होना वणित है । यहां निमित्त उक्त नहीं है । २. उक्तनिमित्त वह है, जिसमें निमित्त उक्त हो। आलि इन लोयनन को उपजी बड़ी बलाय। ' नीर भरे नित प्रति रहे तऊ न प्यास बुझाय ।-प्राचीन नौर कारण के रहते प्यास का न बुझाना कार्य वर्णित है।