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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५०२

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४२२ काव्यदर्पण ३४ विषय (Incongruity) जहाँ विषम घटना का अर्थात् बे-मेल का वर्णन हो, वहाँ विषम अलंकार होता है। इसके तीन भेद होते हैं । १. प्रथम विषम-जहाँ एक दूसरे के विरुद्ध होने के कारण सम्बन्ध न घटे वहाँ यह अलंकार होता है। कहाँ मेघ और हंस ? किन्तु तुम भेज चुके संदेश अजान । तुड़ा मरालों से मंदर धनु जुड़ा चुके तुम अगणित प्राण ।-पत यहाँ मेघ-द्वारा संवाद मेजना, मरालों से विशाल धनुष तुड़वाना, सम्बन्ध को अयोग्यता सूचित करता है। काले कुत्सित कीट का कुसुम में कोई नहीं काम था। कोटे से कमनीयता कमल में क्या है न कोई कमी ? बंडों में कब ईख विपुलता है ग्रन्थियों की भली हा दुर्दैव प्रगल्भते अपटुता तूने कहाँ की नहीं।-हरिऔध यहां के सम्बन्ध का वर्णन भी अयोग्य है। २. द्वितीय विषम-जहाँ क्रिया के विपरीत फल की प्राप्ति होती है वहाँ द्वितीय विषम अलकार होता है। नही तत्वतः कुछ भी मेरे आगे जीना मरना, किन्तु आत्मघाती होना है घात किसी का करना ।-गुप्त ___इसमें किसी के मारने की क्रिया से आत्मघाती होना रूप अर्थ की प्राप्तिः होती है। ३. तृतीय विषम-कार्य और कारण के गुणों और क्रियाओं के एक-दूसरे के विरुद्ध वर्णन करने को तृतीय विषम कहते हैं। मांग मैंने ही लिया कुल-केतु, राज-सिंहासन तुम्हारे हेतु, 'हा हतोऽस्मि हुए भारत हत बोध, 'हूँ' कहा शत्रुघ्न ने सक्रोष । -गुप्त यहाँ राजसिहासन मांगने को कारण-क्रिया से भरत के हतबोध होना रूपा क्रियाविरुद्ध कार्य वर्णित है। हिन्दो के कुछ आलंकारिक कार्य की रूप-भिन्नता को भी विषम अलंकारः कहते हैं। दीप सिखा रंग पीतते धूम कढ़त अति श्याम । सेत सुजस छाये जगत प्रकट आपते श्याम ।