पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५०५

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अन्योन्य ४२५ अन्योन्य (Reciprocal) जहाँ दो वस्तुओं का अन्योन्य सामान्य सम्बन्ध बतलाया जाय, अर्थात् पारस्परिक कारणता, पारस्परिक उपकार अथवा सामान्य व्यवहार का वर्णन हो वहाँ यह अलंकार होता है। ___रामचन्द्र बिनु सिय दुखी सिय बिनु उत रघुराय । यहाँ एक ही कारण है जो एक के बिना दूसरा दुखो है । कल्पना तुममें एकाकार कल्पना में तुम आठों याम । तुम्हारी छवि प्रेम अपार प्रेम में छवि अविराम ।-त इसमें एक क्रिया से पारस्परिक उपकार वर्णित है । मै ढूढ़ता तुम्हें था जब कुज और वन में । तू खोजता मुझे था तब दीन के वचन में। तू आह बन किसी की मुझको पुकारता था। मै था तुझे बुलाता संगीत में भजन में ।-रा० न० त्रिपाठी यहां व्यवहार को समानता दिखाई गयी है। ३७ विशेष (Extra-ordinary) जहाँ किसी विशेषता-विलक्षणता का वर्णन हो वहाँ यह अलंकार होता है। प्रथम विशेष-जहाँ प्रसिद्ध अाधार के बिना अाधेय की स्थिति का वर्णन किया जाय वहां प्रथम विशेष अलकार होता है। आज पतिहीना हुई शोक नहीं इसका अक्षय सुहाग हुआ मेरे आर्यपुत्र तो अजर-अजर हैं सुयश के शरीर में ।-बियोगी यहां पति अाधार के बिना अक्षय सुहाग रूप अाधेय का वर्णन विलक्षण है। चलो लाल वाकी दशा लखो कही नहिं जाय । हियरे है सुधि रावरी हियरो गयो हिराय । प्राचीन यहाँ हृदय में सुषि का रहना और उसी का भूल जाना बिना आधार के श्राधेय का वर्णन है। द्वितीय विशेष-जहां एक ही समय में एक ही रीति से किसी वस्तु का अनेक स्थानों में होने का वर्णन हो वहां द्वितीय विशेष होता है। आँखों की नीरव मिक्षा में आंसू के मिटते दागों में, ओठों को हंसती पीड़ा में आहो के बिखरे त्यागों में, कन-कन में बिखरा है निर्मम, मेरे मान का सूनापन ।-महादेवी