पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५०७

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विचित्र ४२७ यहाँ 'दारिद के डर मानि' कारण से ही उलटा देने का कार्य सिद्ध किया गया है। छल किया भाग्य ने सुझे अयश देने का। बल दिया उसीने भूल मान लेने का ।-गुप्त एक ही वस्तु के दो विरुद्ध कार्य करने के कारण यहां भी एक प्रकार का व्याघात है। ३६ विचित्र (Strange) जहाँ इच्छा से विपरीत प्रयत्न करने का वर्णन हो वहाँ विचित्र अलंकार होता है। अमर बनें, इस लोभ से रण में मरते वीर। भवसागर के पार को बूड़ें गंगा-नीर ॥-राम उन्नत होने के लिए विनत बनों तुम जान । पाने को सम्मान के मन से छोड़ो मान॥-राम इसमें अमर आदि होने के लिए मरना आदि इच्छा के विपरीत प्रयत्न है। भोली भाली ब्रज अवनि क्या योग की रीति जानें। कैसे बूझे अबुध अबला ज्ञान-विज्ञान बातें। देते क्यों हो कथन करके बात ऐसी व्यथाएँ ? देखू प्यारा बदन जिनसे यत्न ऐसे बता दो।-हरिऔध लक्षणानुमार यहाँ विचित्र अलकार है; पर उक्त उदाहरणों-जैसा इसमें वैचित्र्य नहीं। कारण और कार्य के पौर्वापर्यविपर्ययात्मक अतिशयोक्ति का पहले ही उल्लेख हो चुका है। ग्यारहवीं छाया शृङ्खलामूलक अलंकार शृङ्खलाबद्ध अलंकारों में चार अलंकार हैं-कारणमाला, एकावली, सार और मालादीपक । इनमें पद या वाक्य का सांकल-सा लगा रहता है। ४० कारणमाला (Garland of Causes) जहाँ कारण और कार्य की परंपरा कही जाय, अर्थात् पहले का कहा हुआ बाद के कथन का कारण होता जाय, वहाँ यह अलंकार होता है।