पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५२०

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'अतद्गुण ६० अतद्गुण ( Non-borrower ) जहाँ दूसरे का संग रहने पर भी उसका गुण ग्रहण न किया जाय वहाँ अतद्गुण अलंकार होता है। एरी यह तेरी दई, क्यों हूँ प्रकृति न जाइ । नेह भरे हिय राखिये, तू रूखिये लखाइ ।-बिहारी यहाँ नायक के नेह-भरे हृदय से रहने से नायिका को स्निग्य हो जाना चाहिये; 'सो नहीं होती और रूखो को रूखी ही दीख पड़ती है । राधा हरि बन गई हाय यदि हरि राधा बन पाते, तो उद्धव मधुवन से उलटे तुम मधुपुर ही जाते ।-गुप्त इसमें राधा का संग होने पर भो कृष्ण तद्गुण-रूप न हो सके। ६१ प्रश्न ( Question ) जहाँ किसी अज्ञात जिज्ञासा की शान्ति के लिए प्रश्न मात्र किया जाता है वहाँ यह अलंकार होता है। १ वे कहते है उनको मै अपनी पुतली में देखू, यह कौन बता पायेगा किसमे पुतली को देखू ?-महादेवी २ अहे विश्व ! ऐ विश्व व्यथित मन किधर बह रहा है यह जीवन ? यह उघु पोत, पात, तृण, रजकण, अस्थिर मौर वितान, किधर ? किस ओर ? अपार, अजान डोलता है यह दुर्बल यान ।-पन्त ३ मादक भाव सामने सुन्दर, एक चित्र-सा कौन यहाँ ? जिसे देखने को यह जीवन, मर-मरकर सौ बार जिये ।-प्रसाद वर्तमान सा'हत्य का रहस्यवाद ऐसे प्रश्नों का अत्यन्त महत्त्व रखता है। इससे प्रश्न ने अलकार का रूप ग्रहण कर लिया है। ६२ उत्तर ( Reply) चमत्कारक उत्तर होने से उत्तर अलंकार होता है। यह दो प्रकार का होता है। (१) जहाँ उत्तर के श्रवणमात्र मे प्रश्न का अनुमान कर लिया जाय अथवा अनुमति प्रश्न का संदिग्ध वा असंभाव्य उत्तर दिया जाय, वहां प्रथम उत्तर अलंकार होता है। १ तुम मुझमें प्रिय फिर परिचय क्या ! तेरा अधर-विचुम्बित प्याला, तेरी ही स्मृति-मिश्रित हाला तेरा ही मानस मधुशाला, फिर पूछ मैं मेरे साकी देते हो मधुमय विषमय क्या ?--महादेवी