पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४५, सम्मिलित अलंकार अरुण अधरों की पल्लव प्रात, मोतियों-सा हिलता हिम हास । इन्द्रधनुषी पट से ढंक गात, बाल विद्युत का पावस लास । हृदय मे खिल उठता तत्काल अधखिले अंगों का मधुमास । तुम्हारी छवि का कर अनुमान प्रिये प्राणों की प्राण ।-पंत' इसमें भावी पत्नी के भावों के हृदय में वर्तमानकालिक विकास से भाविक अलंकार है। मेंहदी दोन्ही हो जुकर सो वह अजौ लखात । दोबे है अजन दृगनि दियो सो जानं जात ।-प्राचीन यहाँ हाथ में दी हुई मेंहदी का न होने पर भी दिखाई पड़ना और आँख में अंजन देना है । पर उसका दिये हुए के समान दिखाई पड़ना भूत और भावी का प्रत्यक्ष वर्णन है । इसका कारण हाथ को ललाई और आँखों की कालिमा है। वर्गीकरण में रहने के कारण ही ऐसे अलंकारों का उल्लेख किया गया है। अन्यथा इनमें आलंकारिक चमत्कार नहीं है । सम्मिलित अलंकार (Figures of speech in words and sense) सम्मिलित अलंकारों को प्राचार्यों ने उभयालंकार का नाम दिया है। पर' उनका लक्षण-समन्वय नहीं होता। जब संसृष्टि शब्दालंकारों को होती है तब वह उभयालंकार कैसे कहा जा सकता है ; क्योकि उसमें अर्थालकार तो होता नहीं। इससे अलंकारो का जहां सम्मिश्रण हो उसे सम्मिलित वा संयुक्त अलंकार ही कहना उपयुक्त है । ऐसे अल कार दो प्रकार के देखे जाते हैं। ६८ संसृष्टि अलंकार तिलतण्डुल न्याय के अनुरूप अर्थात् तिल और तण्डुल मिश्रित होने पर भी जैसे पृथक्-पृथक् लक्षित होते हैं उसके समान जहाँ अलंकारों की एकत्र स्थिति हो वहाँ संसृष्टि अलंकार होता है। इसके तीन भेद होते हैं-शब्दालंकार-स सृष्टि, अर्थालंकार-संसृष्टि और शब्दार्यालंकार-संसृष्टि । १. जहां केवल शब्दालंकारों की एक ही स्थान पर पृथक-पृथक स्थिति प्रतीत हो वहां यह भेद होता है। मर मिटे रण में पर राम के हम न दे सकते जनकात्मजा । सुन कॅपे जग में बस बोर के सुयश का रण कारण मुख्य है।-रा० च० उ० इसके पहले चरण म र और म की श्रावृत्ति वृत्त्यानुप्रास है और चौथे चरण में बमक है।