पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५३१

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४५२ काव्यदर्पण रत्न के आकर हिमवान का हिम कलंक नहीं होता। यह विशेष कथन बहुत-से गुण में एक दोष छिप जाता, इस सामान्य कथन से समर्थित है। फिर इस कथन का जैसे चन्द्रमा में कलंक, इस उपमाभूत विशेष कथन से समर्थन किया गया है । ७७ मिथ्याध्यवसित (False determination) किसी झूठ को सिद्ध करने के लिए यदि किसी दूसरे झूठ की कल्पना की जाय तो यह अलंकार होता है। सस सींग की करि लेखिनी मसि कुरँग तृष्णा-नीर । आकाश पहिं पर लिख्यो कर हीन कोउ कवि वीर । जनमांध पंगुर मूक बंध्या को जु सुत ले जाय, जसवंत अपजस बधिरगन को है सुनावत जाय ।-ज० य० भू० महाराज जसवंत सिंह के अयश को असत्य सिद्ध करने के लिए शशशृग आदि अनेक असत्यों की कल्पनाएँ की गयी हैं। मधुर वारिधि हो, कटु हो सुधा, अति निवारण हो विष से क्षुधा। रवि सुशीतल, वाहक हो शशी, पर कभी अपनी न मृगीदशी। -रा०च० उ० सत्रहवीं छाया पाश्चात्य अलंकार ___साहित्य और कला का सदा साथ रहा । कला कविता को एक महत्त्वपूर्ण अंग सदा बनी रहो । कला ने कविता में कई करामातें दिखलायीं। कभी कला ही काव्य मान ली गयो और कभी कला काव्य का एक उपादान समझी गयी। पाश्चात्य शिक्षा-समीक्षा के प्रभाव से कला ने कई बार अपना कलेवर बदला। हिन्दी-काव्यकला का विकास इस युग की बड़ी विशेषता है। यह विशेषता पाश्चात्य मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय और धन्यर्थ-व्यञ्जना नामक अलंकारों में लक्षित हो रही है । इन अलंकारों को आधुनिक कवियो ने हृदय से अपना लिया है। प्राचीन हिन्दी कविताओं में ये तीनों विशेषतायें थीं, किन्तु इनकी ओर कवियों का विशेष लक्ष्य नहीं था। ये अलंकार के रूप में कभी नहीं मानी गयीं। संस्कृत- कविता में भी इनका प्रभाव नहीं है।