पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/७४

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विपिनचन्द्र पाल रस और कला की प्रकृतिगत समता के सम्बन्ध में लिखते है-“श्रानन्द, सुख वा प्रसन्नता सभी कलाओं को आत्मा है। चाहे चित्रकला हो, वास्तु-कला हो, स्थापत्यकला हो, कविता हो या संगीत हो, कला की प्रांतरिक शांति आनन्द ही है। भारतीय साहित्य में श्रानन्द का प्रतिशब्द रस है। परमात्मा को उपनिषदों मे रस कहा गया है और उसी रस से सभी जीव आनन्दित होते है ।११ लौकिक भाव के स्पर्श से जब अन्तर के प्रतिरूप भाव तृप्त होते है तब कहा जाता है कि कविता सरस है, उसमें रसोद्बोधन की शक्ति है वा रचना में कवि ने रस-सृष्टि की है । रस कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है। भाव की प्रबलता से हमारी अनु- भूति जो आस्वादन की क्रिया करती है, आस्वादन की वही अवस्था रसावस्था है । अनेक प्राचार्यों ने रस के अनेक लक्षण किये हैं। उनमें अभिनव गुप्त के लक्षण का यह आशय है कि "शब्दों में समर्पित होने और हृदय-संवाद से अर्थात् एकरूपता द्वारा सुन्दर होने पर विभाव और अनुभाव से सामाजिकों के चित्त में पहले से ही वर्तमान रति आदि वासना उद्बुद्ध होती है। उस वासना के अनुगग से सुकुमार होने पर निज संवित् अर्थात् ज्ञान के आनन्द को चर्वणा के व्यापार का जो रसनीय वा श्रास्वादनीय रूप है वही रस है।"२ सारांश यह कि भावतन्मय चित्त में संविदानन्द का प्रकाश ही रस है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से डाक्टर वाटवे ने रस का जो लक्षण लिखा है उसका श्राशय यह है कि "काव्य की उत्कट भावनात्रो के सुन्दर प्रकाशन के प्रति सहृदय पाठकों की सुख सवेदक समग्र प्रत्युत्तरात्मक क्रिया ही रस है ।"3 श्री अतुनचन्द्र सेन ने रस के सम्बन्ध में क्रोचे का जो उद्धरण दिया है उसका श्राशय है-"काव्यगत भावाभिव्यंजन कोई साधारण अलंकार नहीं, बल्कि वह एक गंभीर श्रात्म-निवेदन है, जिसके परिणामस्वरूप हम कष्टकर भावावस्था को १. Anandam or bliss or joy is the soul of all art. This Anandam is the eternal quest of art whether of painting, sculp- ture or architecturc or poetly or music. A synonym for this Anandam in Hindu thought and realisation is Ras. The abso. tute has been described in the Upanishadas. 'रसो बै सः' He is Ras. Through gaining thss Ras all being aie possessed with Anand. Bengul Vaishnavism. २. शब्दसमग्रंमाण-हृदयसंवादसुन्दर विभावानुभावसमुदित-प्रालि नविष्टरत्यादि वासना. मुराग सुकुमार-स्वसंविदानन्द-चर्वणव्यापाररूपो रसनीयो रस:।- ध्वन्यालोक ३. The pleasent and total emotional tesponse of a sympa- thetic reader to the elegant expression of intense emotion in poetry is Ras.