पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

का यह कहना कि 'सौन्दर्यमय वस्तु शाश्वत आनन्ददायक है," असंगत है। हम इस विवार से सहमत नहीं। कारण यह कि वस्तु-स्थिति ज्यों की त्यों रहती है। 'पाण्डु रोगी को जो कुछ हो पौला ही पीला दीख पड़ता है। वह वैसा ही नहीं हो जाता । दूसरो यह बात भी देखी जाती है कि रमणीय पदार्थ मनःस्थिति के परिवर्तन में भी समर्थ हो जाता है। दूसरो का यह भी कहना है कि देखने की कमी की पूर्ति के लिए ही पुनवीर देखना अभीष्ट होता है। इस बात को कोई सहृदय नहीं मान सकता। उस रमणीयता की ही मोहकता, अाकर्षकता वा 'लवलीनेस' है जो उसमें नवीनता पैदा करता है । इसीसे तो कवि कहता है- ज्यों-ज्यों निहारिये नेरे कै नैननि त्यों-त्यों खरी निखरे सो निकाई। कीट्स का कहना है कि "सौन्दय ही सत्य है और सत्य हो सौन्दर्य, यही सब कुछ है। हमें जानने की जो बात है वह यही है।"२ कोट्स के कहने का यह अभिप्राय नहीं कि वस्तुस्थिति का ज्यो का त्यों वर्णन किया जाय और उसकी सीमा के बाहर न जाया जाय । उनकी उक्ति काव्य के सत्य के सम्बन्ध में ही है । क्षेमेन्द्र का भी यही कहना है "सत्य-प्रत्यय का निश्चय होने से काव्य हृदय संवादी होता है । तत्त्वोचित कथन से ही कवि की कविता उपादेय होती है।" यह तत्त्व कवि का काव्योचित सत्य का दर्शन ही है। ___ बली स हब भी यही कहते है कि "जो परम सत्य को प्यार करते हैं और उसके प्रकाश की सामर्थ्य रखते है वे सभी कवि हैं।४। रवीन्द्र के शब्दों में सौन्दय को 'मूर्ति हो मगल को पूर्ण मूर्ति है और मङ्गल- मूर्ति सौन्दर्य का पूर्ण स्वरूप ।' सौन्दर्य का सत्य के साथ जितना सम्बन्ध है उतना ही शिव के साथ भी। जैनेन्द्र कहते हैं- "जीवन में सौन्दर्योन्मुख भावनाओं की नैतिक ( शिवमय) वृत्तियों के विरुद्ध होकर तनिक भी चलने का अधिकार नहीं है । शुद्ध नैतिक भावनाओं की खिझाती हुई, कुचलती हुई जो वृत्तियाँ सुन्दर को लालमा में लपकना चाहती है वे कहीं न कहीं विकृत हैं। सुन्दर नीति-विरुद्ध नहीं है । तब यह निश्चय १. A thing of beauty is a joy for ever. Endymion. २ Beauty is truth, truth beauty-that is all. Ye know on earth, and all ye need to know. ३. काव्य हृदयसवादि सत्यप्रत्ययनिश्चयात् । तत्त्वोचिनाभिधानेन यात्युपादेयतां कवेः ।। औचित्यविचारचर्चा ४. Poets are all who love and feel great truths and tell them. -