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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/८२

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है कि जिसके पीछे वे आवेशमयी वृत्तियाँ लपकना चाहती हैं वह सुन्दर नहीं है, केवल छद्माभास है, सुन्दर को मृगतृष्णिका है।" __ वर्डस्वर्थ का भी कहना है कि "भगवान की कामनायें सारी घटनाओं को कल्याणकारी बनाती है।"२ "मन यदि स्वयं सुन्दर न हो तो सुन्दर को कभी नहीं प्रत्यक्ष कर सकता है।' ऐसा ही प्लेटिनस ने कहा है। रस के काल्पनिक भेद ___ध्वनिकार के एक श्लोक से कितने समालोचक रस के स्थायी रस और संचारी रस के नाम से दो भेद करते है। उस श्लोक का अभिप्राय यह है कि "एकत्रित अनेक रसों में, जिसका रूप बहुलतया उपलब्ध होता है, वह स्थायी रस है और शेष संचारी रस है।४ प्रबन्ध-काव्य तथा नाटक में अनेक रसों की अवतारणा की जाती है। पर सभी रस प्रधान रूप में नहीं रहते। एक को मुख्यता रहती है, अन्यान्य रसो की गौणता। यदि सब रसो की प्रधानता का प्रयत्न किया जाय तो सबों में सफलता मिलना संभव नहीं और सभी गौण रूप से रह जायँ तो किसी रस के परिपाक न होने से प्रबन्ध का उद्देश्य ही सिद्ध न हो। इसीसे ध्वनिकार ने कहा है कि "नाटक रूप वा काव्यरूप प्रबन्धो में अनेक रसों के निबन्धन पर उनके उत्कर्ष के लिए एक रस को अंगी वा मुख्य बनाना चाहिये। इस उद्धरण से यह भी प्रगट होता है कि जो रस स्थायी और संचारी शब्दों से उक्त है उन्हें क्रमश: अंगीरस और अंगरस भी कहा जा सकता है और उनमें अंगांगी-भाव भी है। कारण यह कि कवि के हृदय में उसी रस की प्रेरणा होती है, जिसके प्रकाशन का ही उसका प्रथम उद्देश्य रहता है और मूलभूत उसी रस से अन्य रसों का आविर्भाव होता है और वे उसको परिपुष्ट करते हैं। "विरुद्ध का अविरुद्ध भावों से स्थायी का विच्छेद नहीं होता, बल्कि लवणाकर समुद्र के समान १. 'जैनेन्द्र के विचार' २. His everlasting purposes embrace accidents covering them to good. ३. The mind could never have perceived the beautiful had it not first become beautiful itself ४. बहूनां समवेतानां रूपं यस्य भवेद्वहु । स मन्तव्यो रस. स्थायो शेषाः संचारिणो मताः ।। ध्वन्यालोक .५., प्रसिद्ध ऽपि प्रबन्धानां नानारसनिवन्धने । एको रसोऽङ्गीकर्तव्यः तेषामुत्कर्षमिच्छिता || अन्यालोक