पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/८८

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हो, वही अलंकार ध्वनि में मान्य है। इसी को होम (Home) ने "भावावेश को अवस्था में स्वतः अलंकार उदभूत होते हैं और ब्लेयर (Blair) ने "कल्पना या भावावेश से भाषा अलकृत होती है"3, कहा है। कितने अलंकारों में धनि का पर्याप्त अाभास रहता है। इसी आधार पर कई पूर्वाचार्यों ने ध्वनि को पृथक् न मानकर, अलंकारों मे हो इसके अन्तर्भाव करने की चेष्टा की । ऐसे अलकार है- समासोक्ति, श्राक्षेप, विशेषोक्ति, अपह्न ति, दीपक, अप्रस्तुतप्रशंसा, संकर श्रादि । किन्तु अानन्दवद्धन ने इन श्राचार्यों को मुँहतोड़ उत्तर देकर इनकी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर दी है । एक 'पर्यायोक्त' अलंकार पर ही विचार जाय। भामह कहते हैं कि "पर्यायोक्त अलकार वहां होता है जहां वक्तव्य विषय को •साक्षात् न कहकर प्रकारान्तर से, कथन-विशेष से कहा जाता है ।"४ दण्डो ने भी पर्यायोक्त की परिभाषा इसी प्रकार की है। इसको व्यञ्जना-व्यापार मानकर ध्वनि को अलंकार के अन्तर्गत मान लेने का प्रयास किया गया है । धनिकार के परवर्ती आलंकारिकों ने तो इसको स्पष्ट कर दिया है। व्यग्याथं कथन ही पर्यायोक्त है।" "ध्वनि भाव का कथन हो पर्यायोक्त अलंकार है।" अानन्दवद्धन का कहना है कि "पर्यायोक्त का जो भामह ने उदाहरण दिया है उसमें व्यग की प्रधानता नहीं; क्योंकि वाच्य का परित्यागपूर्वक अविवक्षा नहीं है। अभिप्राय यह कि पर्यायोक्त अलंकार में व्यंग्य अर्थ हो वाच्य रूप में विद्यमान रहता है और वाच्य व्यंग्य का रूप धारण कर लेता है। अर्थात् कारण न रहकर कार्य ही का विधान रहता है। इसलिए ऐसे रूप में उपस्थित करने की शैली बड़ी मधुर होती है । वर्णन शैली की विशेषता के कारण ही व्यंग्य अर्थ-प्रधान हो जाय ऐसी बात नही है। प्रधानता तो अर्थ की विलक्षणता पर निर्भर है जो 'पर्यायोक्त में वाच्य में ही अधिक मानी जाती है। वाच्य अर्थ के उपकारक होकर १. रमाक्षिप्ततया वग्य बन्धः शक्यक्रियो भवेत् । अपथग्यत्नचियः मोऽलंकारो वनौ मतः।-ध्वन्यालोक २. Figures consist in the passional element. ३. Language suggested by imagination or passion. ४. पर्यायोक्त यदन्येन प्रकारेणाभिधीयते ।-काव्यालंकार ५. व्यंग्यस्योक्तिः पर्यायोक्तम् ।-काव्यानुशासन ६ ध्वनितामिधानं पयोक्तिः।-वाग्भटालकार ७ न पुनः पर्यायोक्ते भाममोदाहृतसदृशे व्यंग्य यैव प्राधान्यम् | बाच्यम्य तत्रोपसर्जनीभावनाविवक्षितत्वात् ध्यष्यालोक