पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/८९

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तथा व्यंग्य के उपकार्य होकर रहने से ही ध्वनि संभव है; किन्तु प्रस्तुत अलंकार में यह स्थिति सर्वथा नही है। यदि प्रस्तुत स्थान में व्यंग्य की मुख्यता मान लें तो अहंकारता नही रहने पायगी और अलंकार की मुख्यता स्वीकृत करें तो व्यग्य की प्रधानता नही जम सकेगी। कदाचित-युक्ति के अभाव में-दोनों का अस्तित्व कही अक्षुण्ण रहे भी तो वहां ध्वनि का अन्तर्भाव नहीं हो सकता। ध्वनि में ही इसका अन्तर्भाव भले ही हो जाय । सुरसरि में सागर का अन्तर्भाव संभव नहीं, पर सागर में उसका अन्तर्भाव स्वतः सिद्ध है । इस प्रकार ध्वनि का विषय व्यापक और 'पयायोक्त का विषय अत्यन्त सीमित है। सिद्धान्त यह कि “वाच्य के उपकारक व्यंग्य की जहाँ अप्रधानता हो वहाँ समासोक्ति श्रादि वाच्यालंकार हो स्पष्ट रहते हैं।" ऐसा भी देखा जाता है कि कहीं-कहीं व्यंग्य व्यंग्य न रहकर वाच्य हो जाता है । जैसे, लाई हूँ फूलो का हास, लोगी मोल, लोगो मोल । -पन्त मालिन खिले फूल बेचना चाहती है और कहती है कि फूलों का हास लायी हूँ', तो फूल खिले हुए है, इस वाच्यार्थ को छोड़कर वह व्यंग्याथ को ही अपनाती है। इससे उसके कथन में आकर्षण आ गया है और वह उसकी उद्देश्य-सिद्धि में सहायक है । ऐसे स्थानों में भी पर्यायोक्त माना जा सकता है। भरत मुनि के प्राथमिक चार अलंकार स्य्यक तक सैकड़ों की संख्या तक पहुँच गये । चन्द्रालोक और कुवलयानन्द तक इनकी सख्या कुछ और बढ़ी। शोभाकरकृत 'अलकार रत्नाकर' को बढ़ी हुई संख्या ने यह सिद्ध कर दिया कि "अनन्ता ही वाग्विकल्पास्तत्पकारा एवालंकाराः।" इनमे कुछ तो ऐसे हैं जो चमत्कार-शून्य है, कुछ का अन्यान्य अलंकारों में अन्तर्भाव हो जाता है और कुछ अमुख्य मानकर छोड़ दिये गये हैं। कुछ अलंकारो ने मतभेदों के कारण भिन्न-भिन्न नाम धारण कर लिये हैं। अलंकारों के नामों में भी श्रालङ्कारिकों ने अन्तर कर डाला है। दंडी उपमे- योपमा को अन्योन्योपमा, सन्देह को संशयोपमा, मौलित और तद्गुण को एक हो मौलनोपमा, समासोक्ति को छायोपमा, व्यतिरेक और प्रतीप को उत्कर्षोपमा' कहते हैं। एक दृष्टान्त हो से दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा तथा निदर्शना के नाम पर तीन भेद किये गये हैं। पर सामान्यतः सर्वसाधारण इन्हें दृष्टान्त ही कहा करते हैं। कोई अतिशयोक्ति और अत्युक्ति को एक ही नाम से अभिहित करते हैं। तथास्तु । १. व्यंग्यश्य यत्राप्राधान्य वाच्यमात्रानुयायिनः । समासोक्यादयस्तत्र वाच्यालंकृतयः स्फुटाः।-ध्वन्यालोक