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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/९७

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काव्य के कारण एक लहै तप पुजन के फल ज्यों तुलसी अरु सूर गुसाई । एक लहै बहु संपति केशव भूषण ज्यों बर वीर बड़ाई। एकन को जस ही से प्रयोजन है रसखान रहीम की नाई। 'दास' कवित्तन की चरचा बुधिवंतन को सुख दै सव ठाई। श्रआधुनिक दृष्टि से काव्य का फल हृदयसंवाद अर्थात् काव्य-नाटक के पात्रों के साथ रसिकों का तादात्म्य होना और अत्यानन्द की प्राप्ति तो है ही, क्रीडा-रूप आत्माविष्कार एक ऐसा फल है कि कवि तथा लेखक, सभी इससे सहमत होगे। नाटक क्या है 'क्रीड़नक' 'खेल' ( Play ) ही तो है । 'एकोऽहं बहुस्याम' जैसी भावना हो तो इसमें काम करती है। चौथी छाया काव्य के कारण काव्य का कारण प्रतिभा है। नयी-नयी स्फूर्ति, नव-नव उन्मेष, टटको-टटको सुझ को प्रतिभा कहते हैं। पण्डितराज के विचार से प्रतिभा शब्द और अथं की वह उपस्थिति या श्रामद है, जो काव्य का रूप खड़ा करती है। यही बात मंखक ने बड़े ढंग से कही है-सराहिये उस कवि-चक्रवर्ती को, जिसके इशारे पर शब्दों और अर्थों की सेना सामने कायदे से खड़ी हो जाती है।' वामन ने प्रतिभान अर्थात् प्रतिभा को कवित्वबीज कहा है। आधुनिक अालोचक कल्पना को भी कविता का उत्पादक कारण मानते हैं। ___ रुद्रट ने प्रतिभा को शक्ति नाम से अभिहित किया है । यह पूर्व-जन्माजित एक विशेष प्रकार का संस्कार है, जिसे आचार्य मम्मट आदि ने भी माना है। यह दो प्रकार को होती है एक सहजा और दूसरी उत्पाद्या। सहजा कथंचित् होती है; अर्थात् ईश्वरदत्त या अदृष्टजन्य होती है और उत्पाद्या व्युत्पत्तिलभ्य है । जिनको प्रतिभा नहीं है वे भी कवि हो सकते हैं। क्योंकि सरस्वती की सेवा व्यर्थ नहीं जाती। श्राचार्य दण्डी कहते हैं कि यद्यपि काव्य-निर्माण का प्रबल कारण पूर्वजन्माणित प्रतिभा जिसको नहीं है वह भी श्रुत से अर्थात् व्युत्पत्ति- विधायक शास्त्र के श्रवण, मनन तथा यत्न से अर्थात् अभ्यास से सरस्वसी का १. अभ्रंकषोन्मिषितकीर्तिसितातपत्र. रतुत्यः म एवं कविमण्डलचक्रवर्ती । यस्येच्छयैव पुरतः स्वयमुज्जिहोते । द्राग्याच्यवाचकमयः पृतनानिवेशः। -श्रीकण्ठचरित