पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/९८

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काव्यदर्पण कृपापात्र हो सकता है।' अर्थात् सरस्वती सेवित होने से सेवक को कवि को वाणी देती है। ____ इससे स्पष्ट होता है कि काव्य के कारण प्रतिभा, शास्त्राध्ययन और अभ्यास हैं। कितने प्राचार्यों ने इन तीनों को ही कारण माना है। लोकशास्त्रादि के अवलोकन से प्राप्त निपुणता का ही नाम व्युत्पत्ति है और गुरूपदिष्ट होकर काव्य- रचना में बार-बार प्रवृत्त होना अभ्यास है । ___ ये तीनों काव्य-निर्माण में इस प्रकार सहायक होते है कि प्रतिभा से साहित्य- सृष्टि होती है, व्युत्पत्ति उसको विभूषित करती है और अभ्यास उसकी वृद्धि । जैसे मिट्टी और जल से युक्त बीज लता का कारण होता है वैसे ही व्युत्पत्ति और अभ्यास से सहित प्रतिभा ही कविता-लता का बीज है-कारण है ।२ __जो आधुनिक समालोचक यह कहते हैं कि 'प्रतिभा' ही केवल कवित्व का कारण हो सकती है, इसपर प्राचीनों ने जोर नहीं दिया। संस्कृत श्रालंकारिकों की दृष्टि में अशास्त्राभ्यासी कवि नहीं हो सकता। उनकी दृष्टि से ग्रामीण गीतों में कविल्व नहीं हो सकता आदि। यह कहना ठीक नहीं है। हेमचन्द्र ने स्पष्ट लिखा है कि काव्य-रचना का कारण केवल प्रतिभा ही है। व्युत्पत्ति और अभ्यास उसके संस्कारक हैं, काव्य के कारण नहीं । भामह का तो कहना यह है कि मन्दबुद्धि भी गुरूपदेश से शास्त्राध्ययन में समर्थ हो सकता है ; पर काव्य तो कभी-कभी किसी प्रतिभाशाली के ही सौभाग्य में होता है।४ यदि ग्रामगीतों में कवित्व का अभाव माना जाता तो कवि-कोकिल विद्यापति के गीत इतने समाहत नहीं होते। यही कारण है कि कजली और लावनी के रसिया भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को यह कहने के लिए वाध्य होना पड़ा- भाव अनूठो चाहिये भाषा कोऊ होय । हाँ, यह बात अवश्य है कि आशुकवियों, कव्वालों, लावनी और कजलीवाजे? की तुरत की तुकबंदियों में कवित्व कदाचित ही होता है । १. न विद्यते यद्यपि पूर्ववासनागुणानुवन्धिप्रतिभानमद्भुतम् | । श्रुतेन यत्नेन च वागुपासिता ध्रुव करोत्येव कमप्यनुग्रहम् ।-काव्यादर्श २. प्रतिभैव ताभ्याससहिता कविता प्रति । .. हेतुम॒दम्बुसम्बद्धवीजोत्पत्तिलतामिव । जयदेव ३. प्रतिमेव च कवीनां काव्यकारणकारणम् । व्युत्पत्याभ्यासौ तस्या एवं संरकारकारकी नतु काव्यहेतू ।-काव्यानुशासन ४. गुरूपदेशादध्येतु शास्त्र जडधियोऽप्यलम् । काव्यं तु जायते जातु कस्यचित् प्रतिभावतः।-काव्यालंकार