और अत्याचारियों के बीच उत्साहपूर्वक खड़े होने तथा अपने ऊपर अत्याचार-पीड़ा सहने और प्राण देने के लिए तत्पर होने में। हम तो करुणा और क्रोध के इसी सामंजस्य मे मनुष्य के कर्म-सौन्दर्य की पूर्ण अभिव्यक्ति और काव्य की चरम सफलता मानते हैं ।
मनुष्य की अन्तःप्रकृति के एक पक्ष के सर्वथा अभाव को चरम साध्य रखकर निवृत्ति के आदर्श-स्वप्न में लीन करने मे ही काव्य की उच्चता हम नहीं मान सकते। यह स्वप्न सुन्दर अवश्य है, पर जागरण इससे कम सुन्दर नही है । सप्न और जागरण दोनो काव्य के पक्ष हैं । इन दोनो पक्षो का सामंजस्य काव्य का चरम उत्कर्ष है । काव्य मे हम 'वादो' का बाहर से आना ठीक नहीं समझते । पर यदि 'वाद' शब्द के बिना किसी पक्ष की पहचान न हो सकती हो, तो हमें कहना पड़ेगा कि हमारा पक्ष है 'अभिव्यक्तिवाद' और 'सामंजस्यवाद ।
आदर्श व्यक्ति सिद्ध हो सकता है पर आदर्श लोक साध्य ही रहा है और रहेगा । जिस दिन यह सिद्ध हो जायगा उस दिन यह लोक कर्मलोक न रहेगा । फिर इसके रहने की भी जरूरत रहेगी या नहीं, नहीं कह सकते । प्रयत्न ही जीवन की शोभा है,जीवन का सौन्दर्य है-केवल अपना पेट भरने या आनन्द से तृप्त होने का प्रयत्न नहीं; लोक मे उपस्थित बाधा. क्लेश,विपमता आदि से भिड़ने का प्रयत्न । अँगरेज़ कवि ब्राउनिंग Browning ) ने जीवन के इस प्रयत्न सौन्दर्ग्य की ओर इस प्रकार संकेत किया है-
"यदि मनुष्य केवल आनन्द से तृप्त होने के लिए ही, ढूंढ़ने,