पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/११

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काव्य में रहस्यवाद

पाने और आनन्द लेने के लिए ही, बना है तब तो जीवन का इतना गर्व-उसके महत्त्व की इतना चर्चा-व्यर्थ है । यह अानन्द पूरा हुआ कि मनुष्यों के दिन भी पूरे हुए समझिए । क्या पेट-भरे पशु-पक्षी को भी संशय या चिन्ता सताती है ?

फिर, प्रत्येक बाधा को जो भूतल के सम-सुगम को विपम और दुर्गम करती हो, खुशी से आने दो ; प्रत्येक दंश (पहुँचाए हुए कष्ट) को जो न बैठा रहने देता हो, न खड़ा रहने,वरावर चलाता ही रहता हो, खुशी से लगने दो। हमारे आनन्द बारह आने क्लेश ही हो जायँ तो क्या? प्रयत्नवान् रहो और जो कुछ श्रम पड़े उसे गनीमत समझो । सीखो, कष्ट की परवा न करो; साहस करो, कुश से मुँह न मोड़ो"


  • Poor vaunt of life indeed,

Were man but formed to feed On joy, to solely seek and find and feast. Such feasting ended, then As sure an end to men ; Irks care the cropful bird ? Fiets Doubt the maw-crammed beast ?

Then welcome each rebuff That tarns earth's smoothness rough, Each sting that bids por eit,nor etand,but go Be oui joys three-parts pain! Strive and bold cheap the strain , Leain, por account the pang , daie, bever Grudge the throe