इसका पता एक इसी बात से लग सकता है कि मेरी स्टर्जन की
उपर्युक्त पुस्तक (Studies of Contemporary Poets)
मे मिस मकाले की कविता के परिचय के आरम्भ में उसे 'रहस्य-
वाद' की बताकर, यह भी कहना पड़ा है कि --
"पर इससे (रहस्यवाद की कविता होने से) किसी को यह आशंका न होनी चाहिए कि अब निम्न कोटि की कविता का पाषण्ड सामने रखा जायगा"। *
रहस्यवाद की कविताओ मे सबसे अधिक विरक्ति-जनक दो बातें होती हैं -- भावो में सचाई का अभाव (Insincerity) और व्यंजना की कृत्रिमता (Artificiality)। उनमें व्यंजित अधिकांश भावो को कोई हृदय के सच्चे भाव नहीं कह सकता। अतः उनकी व्यंजना की उछल-कूद भी एक भद्दी नकल-सी जान पड़ती है। भावों की झूठी नक़ल का पता जल्दी लग जाता है। प्रत्येक सहृदय सच्ची कविता पढ़ते समय कवि या आश्रय के साथ तादात्म्य का अनुभव करता है। जहाँ अधिकांश पाठकों में इस प्रकार के तादात्म्य का अभाव देखा गया कि बनावट का
- It (the book) is curiously interesting , since it
may be regarded as the testament of mysticism for the year of its appearance, nineteen hundred and fourteen. That is indeed the most important fact about it; though no one need begin to fear that he is to be fobbed off with inferior poetry on that account.