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काव्य मे रहस्यवाद


जिसे वह प्रस्तुत बताता है, वह ज्ञात या अज्ञात, एक ओट या बहाना मात्र होगा । सत्य सबकी सामान्य सम्पत्ति होता है; झूठ हरएक का अलग-अलग होता है। यही वात काव्यगत सत्या- सत्य के सम्बन्ध में भी ठीक समझनी चाहिए।

विलायती समीक्षा क्षेत्र में 'कल्पना' 'कल्पना' की पुकार बहुत बढ़ जाने पर प्रकृति की सच्ची अभिव्यक्ति से विमुख करनेवाले कई प्रकार के प्रवाद प्रचलित हुए । कल्पना के विधायक व्यापार पर ही पूरा जोर देकर यह कहा जाने लगा कि उत्कृष्ट कविता वही है जिसमें कवि अपनी कल्पना का वैचित्र्यपूर्ण आरोप करके प्रकृति के रूपो और व्यापारों को कुछ और ही रमणीयता प्रदान करे या प्रकृति की रूपयोजना की कुछ भी परवा न करके अपनी अन्तर्वृत्ति से रूप-चमत्कार निकाल-निकालकर बाहर रखा करे । पहली वात के सम्बन्ध में हमे केवल यही कहना है कि कल्पना की यह कार्रवाई वहीं तक उचित और कवि-कर्म के भीतर होगी जहाँ तक वह भाव प्रेरित होगी और उसके आच्छादन से प्रस्तुत दृश्य पर से हमारे भाव का लक्ष्य हटने न पाएगा। दूसरी के सम्बन्ध मे हमारा वक्तव्य यह है कि न तो सच्ची कल्पना तमाशा खड़ा करने के लिये है और न काव्य कोई अजायबघर है। कविता में कल्पना को हम साधन मानते हैं, साध्य नही ।

प्रकृति के रूपों और व्यापारो का उपयोग साधन-रूप में भी होता है, जैसे, अलंकारों मे। अलंकार प्रस्तुत वस्तु या तथ्य की अनुभूति को तीव्र करने के लिए ही प्रयुक्त होते हैं ; पर प्रकृति