पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२ काव्य मे रहस्यवाद ने इस जीवन के साथ "नित्य का संयोग" ( The Eternal Wedding) किसी भविष्य काल में, निर्विशेष और निरपेक्ष आनन्द का स्वप्न देखते हुए, इस प्रकार कराया है- .......So we are driven Onward and upward, in a wind of beauty, Until man's race be wielded by its joy Into some bigh incomparable day, Where perfectly delight may know itself- No longer need a strife to know itself Only by prevailing over pain. "हम सौन्दर्य की वायु मे पड़े वरावर आगे और ऊँचे बढ़ते जाते हैं। इस प्रकार मनुष्य-जाति अन्त में वह अनुपम दिन देखेगी जब आनन्द अपनी अनुभूति आप अकेले कर लेगा- इस अनुभूति के लिए उसे किसी प्रकार के द्वंद्व की अपेक्षा न होगी। आनन्द स्वयंप्रकाश होगा, केवल क्लेश के परिहार के रूप मे न होगा।" पर यह कहना कि अब 'भूत के प्रेम के स्थान पर 'भविष्य के प्रेम' ने घर किया है, एक प्रकार की रूढ़ि (Convention) या वनावट ही है। हृदय की दीर्घ वंशपरम्परागत वासना का उल्लेख हम पहले कर चुके हैं । इस वासना के सघटन मे इतिहास, कथा, आख्यान आदि का भी बहुत कुछ योग रहता है। एक भावुक योरोपियन के लिए एथंस, रोम आदि नामों में तथा एक भावुक भारतीय के लिए अयोध्या, मथुरा, दिल्ली, कन्नौज, चित्तौर,