पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/७०

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६५ काव्य मे रहस्यवाद भी आगे बढ़ सकता है। पर हम समझते है कि उसे यहाँ पर आकर रुक जाना चाहिए कि समालोचना के लिए विद्वत्ता और प्रशस्त रुचि दोनो अपेक्षित हैं । न रुचि के स्थान पर विद्वत्ता काम कर सकती है और न विद्वत्ता के स्थान पर रुचि । अतः विद्वत्ता से सम्बन्ध रखनेवाला निर्णयात्मक आलोचन ( Judicial Criticism ) और मचि से सम्बन्ध रखनेवाली प्रभावात्मक समीक्षा दोनो आवश्यक हैं। एक पुरुप है, दूसरी स्त्री । एक सक्रिय है ; दूसरी निष्क्रिय । एक प्रतिष्टित आदर्श को लेकर किसी काव्य की परीक्षा में प्रवृत्त होता है और उसके प्रभाव मे न आकर अपनी क्रिया में तत्पर रहता है। दूसरी उस काव्य के प्रभाव को चुपचाप ग्रहण करती हुई उसी मे मग्न हो जाती है।। यह तो अवश्य है कि काव्य में अनुभूति या प्रभाव ही मुख्य है। पर इस अनुभूति को एक हृदय से दूसरे हृदय तक पहुँचाना रहता है अतः साधनों की अपेक्षा होती है । निर्णयात्मक आलो- चना इन साधनों की उपयुक्तता की इस दृष्टि से परीक्षा करती है † in cvers age impiessionism (or enjoyment) and dogmatism (or jadgment) have grappled with one ano. ther. They are the two fexes of oriticism, X X X-The masculine criticism, that mas, or may not force its owo standards on literature, but thut never, at all events, 18 dominated by the object of its studies; and the feminine criticism, tbat responds to the lure of art with a bind of passive ecstacy J. I Spingarn—"The New Criticisma" "