[ ४ ] पिंद मोर ध्यानसिंह । सहाराज गुलाबसिंह ने महाराजाधिराज रणजीत- सिंह से उन का राज्य फिर पाया। सुवेतसिंह का वंश नहीं रहा । राणा ध्यानसिंस को हीरासिंह जवाहरसिंह और मोतीसिंह हुए जिन में दाजा मोतिसिंह का वंश है। महाराज गुलावसिंह के उद्धवसिंह रणधीरसिंह और रणवीरसिंह तीन पुत्र हए। प्रथम दोन नौनिहालसिंह और राजा हीरा- सिंह के साथ कम से मर गए इस. से सहाराज रणवोरसिंह वर्तमान जब और कश्लोर के सहाराज ने राज्य पाया। इन के एक वैमा नेय भाई मियां हळू सिंह है जिन को महाराज ने तोद कर रखा था पर सुनते है कि भाज कल कह कद से निकल कर नेपाल प्रान्त में चले गए हैं। सन् १८६१ में महाराज को जो० सी० एम० आई० का पद सर्कार ने दिया और १८६२ में दत्तक लेने का आज्ञापत्र भी दिया। इन को २१ तोप को सलामी है। दिल्ली दरवार में इनको और भी अनेक आदरसूचक पद मिले हैं। ये संस्कृत विद्या और धर्म के अनुरागी हैं इनको तीन पुत्र है यथा युवराज प्रतापसिंह, कुमार रामसिंह धौर कुमार पसरसिंह । राज तरङ्गिगों को समालोचना । निस सहागन्य के कारण हम लोग आज दिन कम्झीर का इतिहा प्रत्यक्ष करते हैं उस के विपय में भी कुछ कहना यहां बहुत आवश्यक है। इस ग्रन्थ को कलहगा दावि ने पाक एक हज़ार सत्तर १०७० में बनाया था उस समय तीसरे गोलर्द से तेईस सौ तीस बरस बीत चुके थे। एस ग्रन्य की संस्कृत लिष्ट और एक विचित्र शैती की है। कवि के स्वभाव का जहां तक परिचय सिला है ऐसा जाना जाता है कि वह उद्धत और अभिमानी था किन्तु साथही यह भी है कि उसकी गवेषना अत्यन्त गम्भीर थी। नीलपुर ण छोड़
- वर्तमान महाराज के पारिषदवर्ग भी उत्तम हैं। इन के एक बड़े शुभ
चिन्तक पण्डित रामक्षष्ण जी ६ कई वर्ष हुए लोगों ने पञ्चक कर के राज्य से अलग कर दिया था और अब उनके पुत्र पण्डित रघुनाथ जी काशीमें रह- ते । महाराज के अमात्य दीवान ज्वाला सहाय के पौत्र दीवान पारास के पुत्र दीवान अनन्तराम जी हैं, जो अगरेती फारसी आदि पढ़े और सुच- तुर है। दाबूनीलाम्बर सुकुर्जी बाबू गणेशचौबे ममृति और भी कई चतुर लोग राज्यकार्य मे दक्ष हैं।