। १२ ] उदयपुर जोतने को भेजी थी किन्तु राजा ने मेल कर लिया। १६ १ १ में जहां- गोर ने नूरजहां से व्याह किया। नूरजहां का पिता गयासवेग ईरान का एका धनो था किन्तु विपत्ति पड़ने से वह व्यापार को हिन्दुस्तान आता था । मार्ग में नरजहां का जन्म हुआ । गयाल यहां पा कर अकबर के दरबार में भरती हो गया था। उसी समय से जहांगीर को नूरजहां पर दृष्टि थी किन्तु अकवर के डर के मारे कुछ कर न सका और शेर अफगन नामक एक पठान अमीर के साथ जिसे पकनर ने बंगाला और बिहार में जागीर दी थी नूरजहां का व्याह हो गया था। वादशाह होते ही जहांगीर ने बंगाले के सवेदार को नरजहां को किसी प्रकार भेज देने को लिखा । शेर अफगन बड़ी बीरता से मारा गया और नरजहां बादशाह के पास भेज दी गई । चार बरस तक जहांगीर ने इस की सुश्रुषा कर के इस के साथ विवाह किया । फिर तो नूरजहां हो सारी बादशाहत कारतो थी जहांगीर नाममात्र को बादशाह था। यह स्त्री चतुर भी अतिशय घी । १६२१ में जहांगीर का बड़ा बेटा खसरो मर गया। परवेज मूर्ख घा, इस से जहांगीर ने खुर्रम शाहजहां को हो अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा । किन्तु नुरजहां की बेटी जहांगीर के चौथे पुत्र शहरयार को व्याही थी इस्स नूरजहां ने उसी को बादशाह बनाने की इच्छा से जहांगीर का सन शाहजहां से फर दिया । पिता का सन फिरा देख शाहजहां बागी हो गया । दक्षिण में और बंगाले में यह ब- राबर लड़ता रहा गोर बादशाहो पोज इसका पीछा किए फिरती थी। अन्त में एक अर्जी भेज कर वाप से इस ने अपराध की क्षमा चाही और अपने दो लड़कों को दरबार में भेज कर आप दक्षिण की सूबेदारी पर चला गया । नूरजहां ने एका वैर बंगाले के सूबेदार प्रसिद्ध बीर महाबतखां को हिसाब देने को बुन्ता सेजा। महाबतखां इस आज्ञा से शंकित हो कर आया सही किन्तु पांच हजार चुने हुए राजपूत अपने साथ लाया । इस समय जहांगीर काबुन्त जाता था। जौं ही सेलस पार इस की सैना उतर चकी यो कि सहाबतखां ने बादशाह और बेगम को घेर कर अपने अधिकार में कर लिया। विन्तु नूरजहां की चालाकी से कुछ दिन पोछे (१६२६) नहा- गीर सहाबतखां के अधिकार से निकल आया । १६२७ में काश्मीर में जहांगीर ऐसा रोगग्रस्त हुआ कि लाहोर में आकर साठ बरस की अवस्था में मर गया । आसिफ़खां नासका नूरजहां के भाई ने जिस के हाथ में सारा राजा-
पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१२७
दिखावट